तमाम कोशिशों के बावजूद अगर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों की खुदकुशी का सिलसिला रुक नहीं पा रहा, तो इस पर समन्वित रूप से विचार-विमर्श की जरूरत है। ऐसी ज्यादातर घटनाएं राजस्थान के कोटा शहर से ही दर्ज होती हैं। दो दिन पहले राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट की तैयारी कर रही एक उन्नीस साल की छात्रा ने खुदकुशी कर ली। उससे एक दिन पहले एक अन्य छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। पिछले तीन महीने में इस तरह सात विद्यार्थी अपनी जान गंवा चुके हैं।

सरकार का निर्देश साप्ताहिक परीक्षणों में कड़ाई न करें

आत्महत्या के बढ़ते मामलों के मद्देनजर पिछले वर्ष राज्य सरकार ने कोटा में चल रहे कोचिंग संस्थानों को निर्देश दिया था कि वे साप्ताहिक परीक्षणों में कड़ाई न करें। पिछले वर्ष कोटा में छब्बीस छात्रों ने खुदकुशी कर ली थी। इन तमाम मामलों के अध्ययन से जाहिर है कि विद्यार्थी पढ़ाई के दबाव और अभिभावकों की अपेक्षाओं पर खरे न उतर पाने के भय से फंदे पर लटक जाते हैं। कोचिंग देने वाले संस्थानों के पढ़ाने-लिखाने के तरीके से भी उनमें मनोचाप पैदा होता है।

युवाओं में विफलता के भय, आत्मविश्वास की कमी आदि को लेकर बहुत बातें होती रही हैं। इसमें अभिभावकों की महत्त्वाकांक्षा और सफलता के सपने वगैरह को लेकर भी अनेक मनोसामाजिक विश्लेषण हो चुके हैं। मगर फिर भी इस समस्या से पार पाने का कोई व्यावहारिक रास्ता नहीं निकल पा रहा है, तो यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर कमी कहां है। यह ठीक है कि जनसंख्या अधिक और अवसर कम होने के कारण प्रतियोगिता दिन पर दिन कठिन होती जा रही है, मगर शिक्षा का ऐसा तरीका क्यों नहीं विकसित किया जा सका है, जो विद्यार्थियों को सहज और सामान्य ढंग से पढ़ाई का वातावरण दे सके।

इसमें जितने जिम्मेदार अभिभावक हैं, उससे कम उन कोचिंग संस्थानों को नहीं माना जाना चाहिए। फिर, कोटा में ही ऐसी मौतें सबसे ज्यादा क्यों हो रही हैं, इसका भी पता लगाया जाना और उन वजहों को खत्म करने का प्रयास होना चाहिए। ऐसी शिक्षा का भला क्या मोल, जो विद्यार्थी को आत्मविश्वास से भरने के बजाय उसे आत्महंता बनाए।