इस वर्ष उत्पादन में कमी की वजह से चीनी की कीमतें बढ़ने की आशंका सिर उठाने लगी है। भारतीय चीनी मिल संघ की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू विपणन वर्ष 2023-24 में 15 दिसंबर तक चीनी उत्पादन 74.05 लाख टन हुआ, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 82.95 लाख टन उत्पादन हुआ था। यानी इस वर्ष ग्यारह फीसद चीनी का उत्पादन कम हुआ है। इसका कारण महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी का उत्पादन कम होना बताया जा रहा है। इस वर्ष पेराई सत्र भी करीब पंद्रह दिन देर से शुरू हुआ।

चीनी के निर्यात पर रोक लगाने के अलावा कोई उपाय नहीं

हालांकि इस वर्ष उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में अधिक हुआ। वहां उत्पादन 15 दिसंबर तक बढ़ कर 22.11 लाख टन हो गया, जबकि पिछले वर्ष समान अवधि में यह 20.26 लाख टन था। इस वर्ष महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन 33.02 लाख टन से घटकर 24.45 लाख टन और कर्नाटक में 19.20 लाख टन से घटकर 16.95 लाख टन रह गया है। इस तरह इस वर्ष भी चीनी के निर्यात पर रोक लगाने के अलावा कोई उपाय नहीं होगा।

इस वर्ष चीनी का उत्पादन 325 लाख टन होने की उम्मीद

चीनी उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। मगर पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह इस क्षेत्र में गतिरोध पैदा हो रहा है, उसके मद्देनजर चीनी के निर्यात में कमी करनी पड़ रही है। घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने और कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने चालू विपणन वर्ष में चीनी निर्यात की अनुमति नहीं दी है। इस वर्ष चीनी का उत्पादन 325 लाख टन होने की उम्मीद है। इसके अलावा 56 लाख टन चीनी का भंडारण है। जबकि खपत 285 लाख टन रहने का अनुमान है। ऐसे में सुरक्षित भंडार में चीनी रखने के बाद अधिक निर्यात की गुंजाइश नहीं रहेगी।

गन्ने के रस से एथेनाल के उत्पादन पर भी पड़ा बुरा असर

अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें पहले ही काफी ऊंची हैं। इसलिए वहां से चीनी मंगाने का फैसला करना मूल्य नियंत्रण के मामले में परेशानी पैदा करने वाला होगा। कुछ दिनों पहले चीनी उत्पादन में गिरावट को देखते हुए सरकार ने गन्ने के रस से एथेनाल बनाने पर रोक लगा दी थी, हालांकि अब वह हटा ली गई है। पर जाहिर है, इससे एथेनाल के उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ा है।

दरअसल, पेराई सत्र देर से शुरू होने और चीनी उत्पादन में कमी का मुख्य कारण गन्ने की बुआई का रकबा घटना है। हालांकि गन्ना सबसे सुरक्षित नगदी फसल मानी जाती है। इस पर मौसम की मार का भी बहुत असर नहीं पड़ता। मगर किसान गन्ना बोने में रुचि कम लेने लगे हैं तो इसकी बड़ी वजह चीनी मिलों द्वारा समय पर भुगतान न किया जाना और पेराई सत्र समय से पहले ही समाप्त कर देना रहा है। मिलें गन्ना नहीं खरीद पातीं, इसलिए हर वर्ष बहुत सारे किसानों को खेत में ही खड़ी फसल जलानी पड़ जाती है।

यद्यपि चालू चीनी मिलों की संख्या पिछले वर्ष के बराबर ही है, मगर यह उजागर तथ्य है कि उनकी पेराई क्षमता कम हुई है। अधिकतर सरकारी और सहकारी चीनी मिलें बीमार हाल में ही हैं। उनके रखरखाव और क्षमता विकास पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता, इसलिए वे कम उत्पादन कर पाती हैं। फिर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के गन्ना किसानों को काफी संघर्ष के बाद आधा-अधूरा भुगतान मिल पाता है, जबकि नियमानुसार पंद्रह दिन में भुगतान हो जाना चाहिए। इस व्यवस्था को सुधारे बिना चीनी उत्पादन के मामले में प्रगति संभव नहीं है।