शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव इस कारोबार का एक आम हिस्सा है, मगर बुधवार को जिस तरह इसमें भारी गिरावट दर्ज की गई, उससे यही पता चलता है कि अनिश्चितता के बीच इसे निर्धारित करने वाले कारकों का संतुलन एक बार फिर डगमगाया। दरअसल, बुधवार को स्थानीय शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट आई और सूचकांक 900 अंक से अधिक को गोता लगाते हुए तिहत्तर हजार अंक के स्तर के भी नीचे आ गया। साथ ही, इस कारोबार में बिकवालों के हावी रहने की वजह से निवेशकों को करीब 13.5 लाख करोड़ रुपए का भी नुकसान हुआ।

हर वर्ष मार्च का महीना शेयर बाजार में गिरावट के लिहाज से संवेदनशील रहा

इस क्रम में छोटी और मध्यम आकार वाली कंपनियों के सूचकांक में तेज गिरावट के बीच चौतरफा लिवाली से बाजार को खासा नुकसान हुआ। बाजार के नीचे आने के कारकों में बिजली, ऊर्जा और धातु के शेयरों में नुकसान और विदेशी संस्थागत निवेशकों की हाल की बिकवाली भी मुख्य रही। यों पिछले कई वर्षों के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो हर वर्ष मार्च का महीना शेयर बाजार में गिरावट के लिहाज से संवेदनशील रहा है। इसलिए इस बार की बड़ी हलचल को भी उसी उतार-चढ़ाव का हिस्सा माना जा रहा है।

हालांकि शेयर बाजार अपनी प्रकृति में जैसा रहा है, उसमें हर रोज उतार-चढ़ाव और गिरना-संभलना उसका अभिन्न हिस्सा है। मसलन, भारी गिरावट के बाद अगले ही दिन शेयर बाजार में खासी तेजी देखी गई और सूचकांक में 330 अंकों से ज्यादा का संतोषजनक उछाल देखा गया और पिछले दिन के मुकाबले राहत का संकेत मिला। आमतौर पर यह शेयर खरीदने वालों की संख्या के समांतर मांग और आपूर्ति की स्थिति पर निर्भर रहता है कि सूचकांक की तस्वीर कैसी रहेगी।

अगर शेयर के खरीदारों की तादाद आपूर्ति के मुकाबले ज्यादा है तो इसका स्वाभाविक असर सूचकांक पर पड़ेगा, शेयरों में उछाल आएगा और उसकी कीमतों में इजाफा होगा। अगर यह रुख तेज और ज्यादा तीखा रहा तो इसका सीधा असर आर्थिक विकास के दावों पर दिख सकता है। एक पहलू यह भी है कि ऐसी स्थिति अक्सर बनती दिखती है तो विदेशी निवेशकों के उत्साह में कमी आने की आशंका पैदा होती है।