उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में एक बच्चे की पिटाई का मामला स्तब्ध कर देने वाला है। खबरों के मुताबिक, निजी स्कूल में प्राथमिक कक्षा के एक विद्यार्थी की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह पहाड़ा याद करके नहीं आया था। इतने भर के लिए शिक्षिका ने अन्य बच्चों से बारी-बारी थप्पड़ लगवाया। जो बच्चा धीरे से मार रहा था, उसे और जोर से थप्पड़ मारने को कहा। पीड़ित बच्चे के रोने के बावजूद कक्षा के बाकी बच्चों ने शिक्षिका का आदेश पूरा किया।
बच्चे की धार्मिक पृष्ठभूमि और पहचान को लेकर भी की अवांछित टिप्पणी
इस घटना में ज्यादा आपत्तिजनक पहलू यह भी सामने आया कि शिक्षिका ने पिटाई खा रहे बच्चे की धार्मिक पृष्ठभूमि और पहचान को लेकर भी अवांछित टिप्पणी की। मामले ने तूल तब पकड़ा जब कक्षा में इस घटना का किसी ने वीडियो बना लिया और उसे प्रसारित कर दिया। हालांकि वीडियो के सामने आने पर शिक्षिका ने अपने बचाव में दलील दी और पुलिस ने वीडियो सहित पूरे मामले की जांच कराने की बात कही है।
पुलिस की सही जांच से ही मिल पाएगी न्याय
प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यही इस घटना के कानूनी निष्कर्ष तक पहुंचने का रास्ता होगा। मगर सच यह है कि घटना का जितना भी हिस्सा सामने आ सका है, वह बताता है कि हमारे शिक्षा संस्थानों में बेहतर पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ मानवीयता को एक मूल्य बनाने का सफर अभी बहुत लंबा है।
सवाल है कि सिर्फ कोई पाठ याद न कर पाने की वजह से किसी शिक्षक को यह अधिकार कहां से मिल जाता है कि वह बच्चे के साथ इस तरह पेश आए। इस मामले में कानूनी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और सर्वोच्च न्यायालय तक का साफ निर्देश है कि किसी भी स्थिति में बच्चे की पिटाई गैरकानूनी है। यहां तक कि उसके साथ डांट-फटकार भी नहीं की जा सकती। इसके बावजूद बहुत सारे शिक्षकों को इन निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं लगता है। जबकि स्कूल और कक्षा में शिक्षक के व्यवहार को लेकर अगर कानूनी मानदंड तय किए जाते हैं तो यह अपने आप में एक अफसोसनाक पहलू है।
इसके अलावा, सुर्खियों में आए वीडियो में शिक्षिका जो कहती दिखाई देती है, उससे जाहिर है कि वह न तो शिक्षण के लिए योग्य है और न ही उसमें मानवीय संवेदना के तत्त्व बचे हैं। यों भी, स्कूली शिक्षा के दौरान अगर कोई बच्चा पढ़ाई-लिखाई के मामले में पीछे रह जाता है, तो यह मुख्य रूप से शिक्षकों की ही नाकामी है। पर अपने दायित्व को ठीक से न निभा पाने की भरपाई के लिए कई बार शिक्षक विद्यार्थियों को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं।
ताजा घटना का सबसे चिंताजनक पहलू बच्चे के साथ हुए दुर्व्यवहार का तरीका है। यह कल्पना भी बेहद तकलीफदेह है कि जिस बच्चे को उसके सहपाठी थप्पड़ मार रहे थे, उसके कोमल मन-मस्तिष्क पर कितना गहरा मनोवैज्ञानिक आघात लगा होगा और भविष्य में वह स्कूल, कक्षा और बाकी बच्चों को लेकर किस हद तक सामान्य तरीके से सोच पाएगा। फिर शिक्षक के कहने पर थप्पड़ लगा रहे अन्य बच्चों के भीतर कैसा मानस तैयार होगा?
अगर धर्म, जाति या वर्ग के आधार पर शिक्षक भी अपना बर्ताव तय करने लगेंगे और अन्य बच्चों को भी उसमें शामिल करेंगे तो जो समाज तैयार होगा, वह कितना मानवीय होगा? इस लिहाज से देखें तो इस घटना से निपटने के लिए सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है, जो शिक्षा व्यवस्था को इस तरह के दुराग्रह और कुंठा से पूरी तरह मुक्त कर सके।
