आर्थिक विकास दर ऊंची रहने के बावजूद कुछ क्षेत्रों का प्रदर्शन अपेक्षित रूप से उत्साहजनक नजर नहीं आता। सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन भी जनवरी माह की तुलना में फरवरी में सुस्त दर्ज हुआ। इसकी वजह कारोबारी गतिविधियों, बिक्री और नौकरियों में नरमी बताई जा रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि जब सूचकांक पचास से नीचे आ जाता है, तब चिंता की बात मानी जाती है।
फरवरी में सेवा क्षेत्र का सूचकांक 60.6 दर्ज हुआ। इस क्षेत्र में अभी मजबूती की संभावनाएं जताई जा रही हैं। दरअसल, सेवा क्षेत्र का जीडीपी में योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए कि इस क्षेत्र में बैंकिंग, बीमा, दूरसंचार, आतिथ्य, पर्यटन आदि से जुड़ी गतिविधियां शामिल होती हैं। इस क्षेत्र में राजस्व और रोजगार के अवसर भी अधिक होते हैं।
इसमें ताजा सुस्ती की बड़ी वजह मांग में आई कमी बताई जा रही है, हालांकि विदेश से कारोबार को संतोषजनक माना जा रहा है। फिर भी इससे अर्थव्यवस्था के कुछ असंगत पहलू रेखांकित होते हैं। एक तरफ तो राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वेक्षण में बेरोजगारी दर घट कर 3.1 फीसद पर पहुंचने का आंकड़ा सामने आया है, दूसरी तरफ सेवा क्षेत्र में सुस्ती के पीछे नौकरियों की कमी को बताया जा रहा है।
यह उजागर तथ्य है कि सेवा क्षेत्र में नरमी रहने का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है। कंपनियां अपना घाटा पूरा करने के लिए छंटनी की प्रक्रिया अपनाने लगती हैं। फिर उद्योग क्षेत्र का प्रदर्शन भी चालू वित्तवर्ष की तीसरी तिमाही में उत्साहजनक नहीं देखा गया। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन निराशाजनक बना हुआ है। सेवा क्षेत्र के बल पर विकास दर ऊपर का रुख बनाए हुई है।
अगर उसमें भी सुस्ती बनी रही, तो इसे उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता। जब केवल कुछ क्षेत्रों के बल पर विकास दर ऊंची दर्ज होती है, तो उसमें थोड़ा-सा भी असंतुलन खतरनाक साबित होता है। इसीलिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी बाजार में संतुलन बनाए रखने के लिए बैंक दरों के मामले में अपने हाथ रोक रखे हैं। मगर सेवा क्षेत्र के डगमगाने से एक बार फिर रेखांकित हुआ है कि संतुलित विकास दर के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।