खासकर कोरोना के दौरान लगाई गई पूर्णबंदी ने समूची दुनिया के साथ-साथ भारत में भी आर्थिक स्थिति को किस कदर नुकसान पहुंचाया, यह जगजाहिर तथ्य है। लेकिन इस मुश्किल से निपटने के क्रम में भारत ने जिस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया, उसका हासिल यह रहा कि बीते कुछ समय से अर्थव्यवस्था अब संभलने लगी है। बजट से पहले मंगलवार को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में वित्तमंत्री ने जो ब्योरा पेश किया, उससे यह उम्मीद जगी है कि आने वाले वक्त में ऐतिहासिक झटकों से उबर कर देश की आर्थिक नाव एक बार फिर रफ्तार पकड़ सकती है।

मसलन, किसी भी देश की आर्थिक स्थिति पर गौर करने के लिए अर्थव्यवस्था की विकास दर को एक मुख्य संकेतक के रूप में देखा जाता है। इस लिहाज से देखें तो आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2023-24 में करीब साढ़े छह फीसद रहने का अनुमान है। हालांकि इस मामले में बीते एक साल के आंकड़े को देखते हुए साढ़े छह फीसद विकास दर का अनुमान निश्चित रूप से अपेक्षित गति से कम है, मगर इसके बावजूद उम्मीद जताई गई है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

इसके अलावा, महंगाई की रफ्तार और उस पर काबू पाना एक सबसे बड़ी चुनौती बनी रही। इस समस्या की तीव्रता कायम रहने की एक बड़ी वजह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध भी रहा। लेकिन पिछले कुछ हफ्ते से खुदरा मुद्रास्फीति की दर में गिरावट और भारतीय रिजर्व बैंक की लक्ष्य सीमा के भीतर वापस आने के साथ महंगाई के मोर्चे पर काफी हद तक राहत देखी गई।

इसके समांतर घरेलू अर्थव्यवस्था में खासी मजबूती की वजह से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में एक बार फिर वापसी की उम्मीद जताई गई है। समीक्षा के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर महंगाई का स्तर उच्च बने रहने से चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है, इसलिए इस पर नजर रखने की जरूरत बनी रहेगी। फिर भी शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर में जिस तरह कमी हो रही है, उसमें नए रोजगारों के सृजन की तस्वीर में भी तेजी से सुधार हुआ है। गौरतलब है कि एक ओर बेरोजगारी और दूसरी ओर महंगाई के संयोग ने न सिर्फ आम लोगों की जिंदगी को बेहद मुश्किल बना दिया, बल्कि इसने देश की अर्थव्यवस्था पर भी बेहद नकारात्मक असर डाला था।

पिछले कई महीनों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की गिरती कीमत ने काफी चिंता पैदा की है। इस आर्थिक समीक्षा में भी कहा गया है कि दुनिया की अधिकांश मुद्राओं की तुलना में रुपए का प्रदर्शन बेहतर रहने के बावजूद अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट की चुनौती बनी हुई है। दरअसल, महामारी के बाद पूर्णबंदी की वजह से सब कुछ ठप होने की स्थिति ने अर्थव्यवस्था पर जैसी चोट की थी, उसमें पिछले पूरे साल को उससे उबरने की कोशिशों के तौर पर देखा जा सकता है।

मगर अब आर्थिक सर्वेक्षण में जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब महामारी-पूर्व के विकास पथ पर अग्रसर है और सभी क्षेत्रों में व्यापक आधार पर सुधार कर रही है। समीक्षा में आए कई अन्य संकेतकों से भी अर्थव्यवस्था के फिर से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उतरने की उम्मीद बंधी है। अब देखना है कि आर्थिक सर्वेक्षण के आलोक में अगले वित्तवर्ष के बजट की दिशा क्या रहेगी!