जिस दौर में सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जा रहा हो कि देश में भ्रष्टाचार को खत्म करना सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है, उसमें हर कुछ समय बाद नए घोटालों का सामने आना क्या दर्शाता है! एबीजी शिपयार्ड कंपनी का ताजा घोटाला पिछले कुछ सालों से लगातार सामने आ रही बैंकों के साथ होने वाली धोखाधड़ी में महज एक नई कड़ी है। एबीजी शिपयार्ड कंपनी की हेराफेरी को देश के बैंकिंग इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है।
इसमें हैरानी की बात बस यह है कि इस तरह के भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद इस प्रवृत्ति पर लगाम लगने के बजाय और बड़े रूप में ही पकड़ में आ रहे हैं। यह सब तब भी जारी है जब ऐसी हेराफेरी से देश को बड़े-बड़े झटके लग चुके हैं। सवाल है कि भ्रष्टाचार को दूर करने को अपनी सबसे अहम प्राथमिकता घोषित करने वाली सरकार और समूचे तंत्र की सीमा आखिर क्या है कि घोटालों का एक सिलसिला कायम है और एक के बाद एक व्यापक भ्रष्टाचार के मामले देश के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं!
दरअसल, एबीजी शिपयार्ड कंपनी ने देश के अलग-अलग अट्ठाईस बैंकों से कारोबार के नाम पर 2012 से 2017 के बीच कुल 28,842 करोड़ रुपए का ऋण लिया था। लेकिन इस संबंध में आई रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी पर आरोप है कि बैंक धोखाधड़ी के जरिए हासिल रकम को विदेश में भेज कर अरबों रुपए की जायदाद खरीदी गई। कंपनी ने गैरकानूनी गतिविधियों के जरिए बैंक से कर्ज में हेरफेर किया और रकम ठिकाने लगा दी। जाहिर है, यह सब कोई अचानक या दो-चार दिनों में नहीं हुआ होगा। बल्कि हालत यह है कि 2016 में ही बैंकों का भारी-भरकम ऋण एनपीए भी घोषित हो गया था। लेकिन देश की इस सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी के खिलाफ पहली शिकायत 2019 में दर्ज कराई गई।
इससे पहले ठीक इसी तरह के भ्रष्टाचार के संदर्भ में विजय माल्या ने जब नौ हजार करोड़ रुपए और नीरव मोदी ने चौदह हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की थी, तब उसे लेकर गहरी चिंता जाहिर की गई थी। मगर अब एबीजी शिपयार्ड कंपनी ने करीब तेईस हजार करोड़ रुपए का जो घोटाला किया है, वह विजय माल्या और नीरव मोदी की धोखाधड़ी के रकम के लगभग बराबर है। समय पर इन्हें पकड़ पाने में सरकारी एजेंसियों की नाकामी के बाद आज विजय माल्या और नीरव मोदी को भगोड़ा घोषित किया जा चुका है।
ताजा मामले में सीबीआइ ने एबीजी शिपयार्ड कंपनी के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ऋषि कमलेश अग्रवाल समेत आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है, लेकिन खबरों के मुताबिक ऋषि अग्रवाल पहले ही देश छोड़ कर भाग चुका है और फिलहाल सिंगापुर में रह रहा है। यह स्थिति बताती है कि हमारे देश में आर्थिक गतिविधियों में हेराफेरी और गबन पर नजर रखने वाले महकमे और दूसरी एजंसियां किस कदर तब तक अपनी आंखें मूंदे रखती हैं, जब तक कि कोई मामला किसी तरह सतह पर न आ जाए।
आखिर वे क्या वजहें रहीं कि छोटी-मोटी रकम के ऋण की वसूली में अत्यंत सजग रहने वाले बैंकों को इतनी बड़ी रकम को लेकर समय पर कोई संदेह नहीं हुआ? किन परिस्थितियों में इतनी बड़ी रकम का घोटाला करने वाले कई सालों तक धोखाधड़ी का खेल करते रहे और समय रहते बचने के लिए विदेश भी भाग गए और संबंधित महकमों और जांच एजंसियों को पता नहीं चला? घोटालों और हेराफेरी की यह हकीकत सबके सामने है और ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ घोषित लड़ाई का स्वरूप क्या है और यह किसके हित में है!