बढ़ते सड़क हादसों के मद्देनजर कुछ समय से सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही सख्त रुख अख्तियार किया है। दस दिन पहले उसने केंद्र सरकार से कहा था कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों, खासकर रफ्तार पर काबू न रखने वालों के खिलाफ कड़े दंडात्मक प्रावधान किए जाएं। अब उसने कहा है कि नशे की हालत में वाहन चलाने वालों को, चाहे वे पहली बार ही क्यों न पकड़े जाएं, छह महीने करावास का दंड दिया जाना चाहिए। बार-बार ऐसा करने वालों को दो साल तक कैद की सजा दी जाए। हालांकि मौजूदा कानूनों में इस दंड का प्रावधान है, मगर पुलिस आमतौर पर नशा करके गाड़ी चलाने वालों को चेतावनी देकर और चालान काट कर बरी कर देती है।
अगर कोई व्यक्ति नशे की हालत में गंभीर दुर्घटना कर देता है तब भी उसके खिलाफ गफलत में गाड़ी चलाने की दफा के तहत कार्रवाई की जाती है। इस तरह बहुत सारे लोगों में यातायात नियमों को लेकर लापरवाही का भाव बना रहता है। नशे में गाड़ी चलाने वाला एक आत्मघाती हमलावर की तरह होता है। वह दूसरों के लिए भी खतरनाक है और खुद के लिए भी। पिछले कुछ सालों में जिस तरह सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मारे जाने वाले लोगों की तादाद बढ़ी है, उसे देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय की चिंता समझी जा सकती है। दुनिया में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं हमारे देश में होती हैं। इसके बावजूद हमारे यहां यातायात नियमों के उल्लंघन को लेकर सबसे नरम कानून हैं।
हालांकि सड़क दुर्घटनाओं और यातायात नियमों के उल्लंघन की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के मकसद से पिछले कुछ सालों में जुर्माने और दंडात्मक प्रावधानों को कड़ा बनाने का प्रयास किया गया। पर इसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल पाया। इसकी बड़ी वजह यह है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में शिथिलता बरती जाती है। यों पुलिस अक्सर विज्ञापनों के जरिए नशे की हालत में वाहन चलाने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के आंकड़े जारी करके अपने सख्त रुख का इजहार करती रहती है, पर हकीकत यह है कि सड़क दुर्घटनाओं के मामले में रसूख वाले लोगों के खिलाफ उसका रुख लचीला ही नजर आता है।
यहां तक कि बहुत सारे मामलों में वह उचित जुर्माना भी नहीं वसूलती, रिश्वत लेकर मामले को रफा-दफा कर देती है। करीब दो साल पहले खुद केंद्रीय परिवहन मंत्री ने इस बात को स्वीकार किया था कि पुलिस की ढिलाई के चलते यातायात नियमों पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित नहीं हो पाता है। सड़कों पर टक्कर मार कर भाग निकलने वालों की पहचान करना पुलिस के लिए मुश्किल बना हुआ है। यों बार-बार या गंभीर रूप से यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर चालक का ड्राइविंग लाइसेंस रद््द करने का कानून है, पर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के मामले में पर्याप्त सावधानी और कड़ाई न बरते जाने का नतीजा है कि लोग आसानी से दूसरा लाइसेंस बनवा लेते हैं। ऐसे में यातायात कानूनों से जुड़े तमाम पहलुओं को दुरुस्त करने और उन पर कारगर अमल की जरूरत है।
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