प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चों का केंद्रों पर पहुंचने से पहले ही बाहर आ जाना जैसे आम बात हो गई है। हर घटना के बाद सरकारें नकल माफिया पर शिकंजा कसने और परीक्षा प्रणाली को भरोसेमंद बनाने का संकल्प दोहराती हैं, मगर अगली ही किसी परीक्षा में फिर पर्चे बाहर हो जाते हैं। पिछले महीने उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती परीक्षा का पर्चा फूटा था। नतीजतन, परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी। अब बिहार लोक सेवा आयोग की शिक्षक भर्ती परीक्षा के पर्चे परीक्षा से एक दिन पहले ही बाहर आ गए और नकल माफिया दस लाख रुपए लेकर विद्यार्थियों को उनके उत्तर उपलब्ध कराने लगा था।
बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को दो दिन पहले ही जानकारी मिल गई थी कि शिक्षक भर्ती परीक्षा के प्रश्नपत्र हल करके बांटे जा रहे हैं। परीक्षा के बाद जब पकड़े गए और परीक्षा के प्रश्नपत्रों का मिलान किया गया, तो जाहिर हो गया कि पर्चा पहले ही फूट गया था। अब इसे लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। बिहार लोक सेवा आयोग ने भरसक यह साबित करने की कोशिश की कि शिक्षक भर्ती परीक्षा का प्रश्नपत्र बाहर नहीं आया, मगर आखिरकार यह साबित करने में नाकाम रहा।
बिहार में कई वर्ष से शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया रुकी हुई थी। जब उसे भरने का काम शुरू हुआ और दो चरण की परीक्षाओं में हजारों विद्यार्थियों का चयन कर उन्हें नियुक्ति पत्र दे दिए गए तो इसे लेकर युवाओं में उत्साह बना। इस बीच नकल माफिया भी सक्रिय हो गया और इसके तीसरे चरण की परीक्षा में पर्चा बाहर निकाल लाया। हालांकि यह अकेले बिहार की बात नहीं है जब परीक्षा से पहले पर्चा बाहर निकाल कर नकल माफिया ने पैसा बटोरना शुरू कर दिया।
मगर हैरानी इस बात की है कि तमाम तथ्यों से वाकिफ होते हुए भी परीक्षा की तैयारियों में अपेक्षित सावधानी क्यों नहीं बरती जाती। एक दिन पहले प्रश्नपत्र बाहर आने और सवालों के उत्तर तैयार किए जाने का मतलब है कि नकल माफिया ने प्रश्नपत्रों के केंद्रीय सुरक्षा तंत्र में सेंधमारी की। जबकि आजकल प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे खोलने के लिए कई स्तर के कवच तैयार किए जाते हैं। अगर नकल माफिया उन्हें भेद गया, तो जाहिर है कि उसमें परीक्षा आयोजित कराने वाले तंत्र की भी मिलीभगत थी।
सरकारी नौकरियों के लिए युवाओं की ललक किसी से छिपी नहीं है। विभिन्न महकमों में लाखों पद वर्षों से खाली हैं। उन पर भर्ती प्रक्रिया रुकी हुई है। ऐसे में, जब भी किसी महकमे में कोई भर्ती खुलती है, तो देश भर से लाखों युवा आवेदन करते हैं। इस वक्त रोजगार की जैसी कमी देखी जा रही है, उसमें अपनी योग्यता के हिसाब से बहुत नीचे के पदों पर भी हजारों युवा आवेदन करते हैं।
इस स्थिति में अगर प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था चाक-चौबंद नहीं हो पाती और पर्चा बाहर आने की वजह से परीक्षाएं रद्द करनी पड़ती हैं, तो लाखों युवाओं का पैसा और समय बर्बाद जाता और उनका मनोबल कमजोर पड़ता है। फिर नए सिरे से उन्हें आवेदन करना और उसकी तैयारी करनी पड़ती है। इस बीच कई युवाओं की उम्र भी पार हो जाती है। यह समझ से परे है कि नकल माफिया की करतूतों से वाकिफ होते हुए भी सरकारें और प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित कराने वाले कोई पुख्ता तंत्र विकसित करने में कामयाब क्यों नहीं हो पाते।