हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर जाट समुदाय का आंदोलन इतना उग्र हो गया कि उससे निपटने के लिए राज्य सरकार को बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बल तैनात करने पड़े और कई जगह कर्फ्यू लगाना पड़ा। सेना तक बुलानी पड़ी। सही है कि यह कोई कानून-व्यवस्था का सामान्य मामला नहीं है जिसे सिर्फ प्रशासनिक चूक या लापरवाही के खाते में डाल दिया जाए। फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि हालात की गंभीरता को समझने में राज्य सरकार की ओर से हुई देरी ने स्थिति को और विकट बना दिया। हिंसा में पांच व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। आंदोलनकारी भीड़ ने कई जगह हाइवे और रेलमार्ग जाम कर दिए।

आंदोलन का दायरा अभी और फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जाटों की मांग है कि केंद्र सरकार संसद के जरिए कानून बना कर उन्हें ओबीसी श्रेणी के तहत केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण दे। दूसरे, हरियाणा सरकार उन्हें ओबीसी में शामिल करे, और उत्तर प्रदेश में उन्हें मिले आरक्षण से कोई छेड़छाड़ न हो। कई अन्य प्रदेशों के जाटों को भी ओबीसी में शामिल किया जाए। मांग के मद््देनजर हरियाणा सरकार ने एक समिति बना दी है जो इकतीस मार्च तक अपनी रिपोर्ट देगी।

पर इससे कोई हल निकल ही आएगा यह दावा नहीं किया जा सकता। दरअसल, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सरकार के हाथ बांध रखे हैं। मार्च 2014 में, जब लोकसभा चुनाव नजदीक आ गए थे, तत्कालीन यूपीए सरकार ने जाटों को केंद्रीय सेवाओं में ओबीसी के तहत आरक्षण देने का फैसला किया था। पर एक याचिका के जरिए उसे चुनौती दी गई और साल भर बाद न्यायालय ने उसे अवैध घोषित कर दिया।
संसद के जरिए कानून बना कर जाटों की मांग पूरी करना आसान नहीं हो सकता, क्योंकि ओबीसी आधार वाली पार्टियां और नेता इसके लिए शायद ही राजी होंगे।

जाट आरक्षण की मांग वैसी ही है जैसी गुजरात में पटेल आरक्षण की मांग। सवाल है कि जो समुदाय कभी अपनी आत्मछवि पिछड़े के तौर पर नहीं देखते थे, क्यों आज आरक्षण के लिए आसमान सिर पर उठाए हुए हैं। इसकी एक वजह तो सियासी है। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड््डा की दिलचस्पी इसी में होगी कि राज्य सरकार से जाटों की नाराजगी बढ़े।

पर दूसरा कारण यह भी है कि जो समुदाय कभी खेती के बल पर खुद को खुशहाल महसूस करते थे, खेती के घाटे का धंधा बनते जाने के कारण इसमें अपना भविष्य नहीं देख पाते। फिर, सरकारी नौकरियों में जो बेहतर आय, समयबद्ध पदोन्नति और रोजगार की सुरक्षा है वह गैर-सरकारी नौकरियों या स्व-रोजगार में नहीं। इसलिए सरकारी नौकरियों के लिए मारामारी बढ़ी है और आरक्षण के लिए खींचतान भी। इस समस्या का समाधान गैर-सरकारी क्षेत्रों में ज्यादा तथा बेहतर अवसरों का सृजन करके ही किया जा सकता है।