अब तक बिजली की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के दायरे में ही विकल्पों की खोज होती रही है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद छिटपुट और छोटे स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों के अलावा इनके व्यापक उपयोग की कोई ठोस पहल नहीं दिखती। इस लिहाज से हरियाणा सरकार का फैसला उचित है। इस फैसले के मुताबिक समूचे राज्य में पांच सौ वर्ग गज या इससे ज्यादा के भूखंड पर बनी सभी इमारतों को यह निर्देश दिया गया है कि वे अगले सितंबर तक अपनी छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगवा लें।
यह आदेश निजी बंगलों, रिहाइशी सोसाइटियों, मॉलों, व्यावसायिक परिसरों से लेकर दफ्तर, स्कूल और अस्पतालों पर भी लागू होगा। जो लोग पहले इस संयंत्र के लिए आवेदन करेंगे, उन्हें तीस फीसद की सबसिडी दी जाएगी। निर्धारित भूखंड वाली इमारतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में कोताही बरती गई तो इसके लिए दस हजार से दस लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। जाहिर है, इस फैसले के अमल में आने के बाद समूचे राज्य में बिजली की जरूरतों के मामले में बड़ा और सकारात्मक बदलाव आ सकता है। खासकर बिजली की काफी अधिक मांग वाले गुड़गांव जैसे इलाकों में तस्वीर काफी बदल सकती है। गौरतलब है कि हरियाणा में यह सौर ऊर्जा नीति पिछले साल सितंबर में ही तैयार की गई थी, जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन अच्छी बात है कि वर्तमान भाजपा सरकार उस पर अमल के लिए सक्रिय दिख रही है।
करीब सवा दो साल पहले ऊर्जा से संबंधित समिति ने लोकसभा में पेश अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में अक्षय ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं और इससे एक लाख उनासी हजार मेगावाट तक बिजली पैदा की जा सकती है। लेकिन इन संसाधनों का इस्तेमाल नहीं हुआ या फिर क्षमता से बहुत कम हुआ। साफ है कि देश में मौजूद इतनी बड़ी संभावना के बावजूद सरकारें बिजली की बढ़ती मांग और उसके मुकाबले कमी की दलील देकर परमाणु संयंत्र बिठाने पर जोर दे रही हैं। इसी के मद्देनजर हाल ही में आस्ट्रेलिया और रूस के साथ भारत ने कई परमाणु संयंत्र लगाने के समझौते किए हैं। जबकि दुनिया भर में पर्यावरण विशेषज्ञ परमाणु संयंत्रों के जोखिम और पर्यावरण को उससे होने वाले नुकसानों को लेकर चेताते रहे हैं।
सच यह है कि ऊर्जा उत्पादन के इस तरीके के मुकाबले सौर या पवन ऊर्जा न केवल देश में बिजली की कमी को पूरा कर सकती है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से अनुकूल और नवीकरणीय है। कई बार इस ओर उत्साह की कमी की वजह इससे संबंधित तकनीकी पर भारी खर्च बताई जाती है। लेकिन आज दुनिया भर में सौर ऊर्जा तकनीक के विकास के मामले में काफी सुधार हुआ है और उस पर आने वाले खर्च कम हुए हैं। मौजूदा प्रौद्योगिकी के अलावा नई तकनीकों को अपना कर अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर जोर दिया जाए तो बिजली की मांग के एक बड़े हिस्से की पूर्ति और प्रदूषण में कमी लाने के साथ-साथ हजारों करोड़ रुपए की बचत भी की जा सकती है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि बिजली उत्पादन को विकेंद्रित करने और इसमें सामाजिक भागीदारी बढ़ाने के लिए अक्षय ऊर्जा को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए।
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