चुनाव नजदीक आने पर सरकारों की तरफ से लोकलुभावन योजनाओं-परियोजनाओं के अनावरण, वस्तुओं की कीमतों में कमी आदि की घोषणाएं करना कोई नई बात नहीं है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में दो रुपए प्रति लीटर की कटौती भी इसी रणनीति का हिस्सा कही जा सकती है। इस पर स्वाभाविक ही विपक्षी दल तंज कस रहे हैं। मगर सरकार की नजर में शायद यह सिर्फ संयोग की बात हो। पिछले दो वर्ष से पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर बनी हुई थीं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर होता था फैसला

हालांकि इस बीच कई बार कच्चे तेल की कीमतों में उतार देखा गया, उसके मद्देनजर मांग की जाती रही कि पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतें में कटौती की जानी चाहिए। मगर तब सरकार ने तर्क दिया था कि तेल के दाम में कटौती इसलिए नहीं की जाएगी, ताकि इससे तेल कंपनियों को हुए घाटे की भरपाई हो सके। पहले के नियम के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में बदलाव किया जाता था। मगर सरकार ने इस तर्क के साथ तेल की कीमतों का निर्धारण खुद से करना शुरू कर दिया था कि कच्चे तेल की कीमतें कम होने पर तेल कंपनियों को जो कमाई होगी, उससे उन्हें अपना तेल का भंडार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

सबसे अधिक आरोप तेल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को लेकर उठता है

तेल की खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी का असर महंगाई पर भी पड़ता है। इससे माल ढुलाई का खर्च बढ़ता है, कृषि कार्य में उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे बाजार में वस्तुओं की कीमतें कई बार काबू से बाहर चली जाती हैं। इसलिए महंगाई पर काबू पाने के लिए तेल की खुदरा कीमतें संतुलित करने के सुझाव दिए जाते हैं। मगर विचित्र है कि खुदरा महंगाई चिंताजनक स्तर पर पहुंच जाने के बावजूद सरकार ने तेल की कीमतों को कम करने पर विचार नहीं किया। सबसे अधिक आरोप तेल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को लेकर उठता रहा है। खुदरा तेल की कीमतें इसलिए ऊंचे स्तर तक पहुंच गई हैं कि इस पर राज्य और केंद्र सरकार ऊंची दर से उत्पाद शुल्क वसूलती हैं।

केंद्र सरकार एकमुश्त प्रति लीटर उत्पाद शुल्क लेती है, जिसे कम करने की मांग अनेक मौकों पर उठाई जाती रही, मगर एकाध मौकों पर उसमें कटौती की गई तो वह भी चुनाव का मौका था। मसलन, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त केंद्र सरकार ने अपने उत्पाद शुल्क में कटौती की थी। जब केंद्रीय उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की गई थी, तब भी यही तर्क दिया गया कि उस शुल्क का उपयोग तेल भंडारण बढ़ाने में किया जाएगा, ताकि आपात स्थिति में तेल की कीमतों पर काबू पाया जा सके। मगर वह भंडारण कितना हो पाया, इसका भी कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
डीजल और पेट्रोल आज आम उपभोक्ता के दैनिक खर्च में शुमार हो चुके हैं।

इनकी कीमतें बढ़ने से उनके मासिक खर्च में बढ़ोतरी हो जाती है। सरकार के ताजा फैसले से निस्संदेह आम लोगों को कुछ राहत मिलेगी, मगर यह कटौती पिछली बढ़ोतरियों की तुलना में इतनी कम है, कि उनकी जेब पर बहुत सकारात्मक असर नहीं पड़ने वाला। ज्यादातर राज्यों में खुदरा पेट्रोल-डीजल की कीमतें सौ रुपए प्रति लीटर के पार या करीब पहुंच चुकी हैं। उसमें दो रुपए की कटौती ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही साबित होगा। इसलिए, अगर सरकार ने चुनाव के मद्देनजर यह फैसला किया है, तो शायद ही उसे इसका कोई बड़ा लाभ मिले।