पिछले तीन दिनों की बरसात में पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों तक उत्तर भारत में हुई तबाही भविष्य के लिए बड़ी चेतावनी है। हालांकि बीते कई सालों से बरसात में ज्यादातर नदियों का विनाशकारी रूप देखने को मिलता रहा है, मगर इस साल की बरसात ने कुछ अधिक भयावह रूप दिखाया है। पहाड़ों पर नदियों के कई पुल बह गए, मैदानी हिस्सों में नदियां अपने खतरे के निशान से ऊपर बहने लगी हैं।

न जाने कितने घर बह गए, अभी तक तेईस लोगों के मारे जाने की खबरें हैं। इसके चलते कारोबार और खेती-किसानी पर जो बुरा असर पड़ रहा है, उसके आंकड़े अलग हैं। कई जगहों पर राहत और बचाव के लिए सेना को तैनात करना पड़ा है। छोटे शहरों की अपेक्षा महानगरों में अधिक परेशानी देखी जा रही है। अभी अगले कुछ दिन और बरसात होने की भविष्यवाणी है। इसलिए अत्याधुनिक कहे जाने वाले शहरों के लोग भयभीत हैं।

मुहल्लों और सड़कों पर पानी जमा है, जिसके चलते लोगों का घरों से बाहर निकलना मुश्किल बना हुआ है। इस तरह शहरी नियोजन को लेकर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी पार्टियों के लिए सत्ता पक्ष पर आरोप लगाने का मौका मिल गया है। मगर यह सवाल अपनी जगह है कि बरसात की वजह से हर साल उपस्थित हो जाने वाले इस संकट का स्थायी समाधान क्या है।

बरसात तो पहले भी होती थी, बाढ़ भी आती थी, मगर ऐसी स्थिति कभी नहीं होती थी कि महानगरों में लोगों का घरों से बाहर निकलना दूभर हो जाए। दरअसल, पिछले कुछ सालों में बरसात का क्रम और रूप बदला है। पहले बरसात कई दिनों तक लगातार होती थी, अब कुछ घंटों की बारिश में ही सड़कें जलमग्न हो जाती हैं। इसका बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है।

अब बरसात एकदम तेजी से होती है, बूंदों का आकार पहले की तुलना में काफी बड़ा हो गया है। फिर, जितना पानी दो-तीन दिनों में बरसा करता था, उतना कुछ ही घंटों में बरस जाता है, जिसके चलते अचानक पानी की मात्रा बढ़ जाती है और उसकी निकासी में काफी वक्त लग जाता है। इसका दबाव नदियों और बांधों पर भी पड़ता है।

जहां पानी अधिक इकट्ठा हो जाता है, वहां के बांध खोल दिए जाते हैं, जिससे उन नदियों का जलस्तर भी एकदम से बढ़ जाता है, जहां बारिश कम या नहीं हुई होती है। जलवायु परिवर्तन का एक असर यह भी हुआ है कि कहीं तो खूब पानी बरस जाता है और कहीं सूखा होता है। इस तरह जिन इलाकों में बारिश नहीं होती वहां भी बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है।

ऐसे में बरसात की विभीषिका से निपटने के लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। आज भी शहरों की जल निकासी व्यवस्था दशकों पहले की बरसात के अनुरूप है, जबकि अब की बरसात बिल्कुल अलग है। जिस तरह जलवायु संकट गहराता जा रहा है, उसमें बरसात की प्रकृति और बदलने के अनुमान हैं।

ऐसे में शहरों की जलनिकासी व्यवस्था को बदलने, जल निकासी के स्रोतों पर कब्जा करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने और नदियों की जल संग्रहण क्षमता को बढ़ाने के उपायों पर सोचना होगा। इसी के समांतर जलवायु परिवर्तन के कारकों पर विराम लगाने की दिशा में गंभीरता से काम करना होगा। मगर जिस तरह कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने और कचरा प्रबंधन आदि के मामले में लापरवाही भरा रवैया नजर आता है, उसे देखते हुए बहुत उम्मीद नहीं जगती।