अब पंजाब में भी लगभग वही स्थिति है, जो कुछ वर्षों से दिल्ली में बनी हुई है। पंजाब में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच अक्सर तकरार होती रहती है। मगर अब स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को चेतावनी दे दी कि वे राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। कोई भी राज्यपाल ऐसा कदम तब उठाता है, जब राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल नजर आने लगता है, वहां की सरकार कानून-व्यवस्था संभालने में लाचार हो जाती है।
सीएम से मांगी जानकारी तो राज्यपाल की नियुक्ति पर ही उठा दिए सवाल
दरअसल, राज्यपाल मुख्यमंत्री से इसलिए खफा हैं कि वे उनके सवालों का जवाब नहीं देते। इस साल फरवरी में जब पंजाब सरकार ने स्कूलों के छत्तीस प्रधानाचार्यों को प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर भेजा था, तब भी राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से कड़ा सवाल पूछा था कि किस अधिकार से उन्होंने प्रधानाचार्यों को सिंगापुर भेजा। इसके जवाब में मुख्यमंत्री मान ने उनके राज्यपाल पद पर नियुक्ति को ही प्रश्नांकित कर दिया था।
मान ने कहा- मणिपुर और नूंह की हिंसा गवर्नर को नहीं दिखती
ऐसे ही तल्खी भरे बयान दोनों तरफ से जब-तब आते रहते हैं। अभी जब राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की चेतावनी दी, तो मान ने प्रेस वार्ता करके कहा कि इन्हें कानून-व्यवस्था की समस्या सिर्फ पंजाब में दिखाई देती है। पड़ोसी राज्य हरियाणा के नूंह में किस तरह हिंसा हुई, किस तरह मणिपुर महीनों से जल रहा है, वह दिखाई नहीं देता।
राज्यपाल की राष्ट्रपति शासन की चेतावनी पर विपक्षी दल भी हुए हावी
पंजाब के राज्यपाल की इस चेतावनी के बाद स्वाभाविक रूप से फिर एक बार राज्यपालों की नियुक्ति, उनके अधिकार क्षेत्र और कामकाज के तरीके पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दलों को एक बार फिर केंद्र सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। इस बहाने दूसरे राज्यों के राज्यपालों के मुख्यमंत्रियों से टकराव की सूची भी पेश की जाने लगी है। दरअसल, जबसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी केंद्र सरकार ने दिल्ली में चुनी हुई सरकार की शक्तियों को उपराज्यपाल के हाथों में केंद्रित करने का कानून बनाया है, तबसे न केवल आम आदमी पार्टी, बल्कि तमाम विपक्षी दल हमलावर हैं।
अब पंजाब के राज्यपाल ने एक तरह से चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने की खुली धमकी दे दी है। यह अलग बात है कि राज्यपाल को यह फैसला लेते वक्त ठोस व्यावहारिक कारण बताने पड़ेंगे, मगर इससे यह ध्वनि गई है कि वे केंद्र सरकार के इशारे पर और पार्टी प्रवक्ता की तरह काम करते हैं। राज्यपाल जब सक्रिय राजनेता की तरह काम करने लगते हैं, तो ऐसे सवाल उठते ही हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पंजाब में मादक पदार्थों की तस्करी और कानून-व्यवस्था से जुड़े जवालों के जवाब लोग चाहते हैं। ये दोनों मुद्दे आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में प्रमुखता से उठाए थे। यह भी छिपी बात नहीं है कि भगवंत सिंह मान के सूबे की कमान संभालने के बाद वहां आपराधिक गतिविधियां बढ़ी हैं। वर्षों से दबी खालिस्तान की मांग एक बार फिर सिर उठाती देखी गई है।
मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक नहीं लग पाई है, जिसके चलते वहां के युवाओं को नशे की गिरफ्त से बाहर निकालना अब भी चुनौती है। अगर इन मुद्दों पर राज्यपाल सरकार के कदमों के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। मगर राज्य की कानून-व्यवस्था के बारे में राज्यपाल को जानने का एक तरीका होता है, उसे छोड़ कर उनसे धमकी भरे अंदाज की अपेक्षा नहीं की जा सकती।