निजी बस सेवाओं में किराया वसूली से लेकर सवारी चढ़ाने-उतारने आदि तक उनके कर्मचारियों की बदसलूकी की शिकायतें आम हैं। निजी बसों में उनके कंडक्टरों और दूसरे कर्मचारियों द्वारा महिलाओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं भी अक्सर देखी-सुनी जाती हैं। ऐसा इसलिए भी है कि आमतौर पर निजी परिवहन सेवाओं के मालिक रसूख वाले लोग होते हैं। बस कर्मचारियों में यह भावना घर कर जाती है कि वे कुछ भी करें, उनके मालिक उन्हें बचा लेंगे। अगर किसी परिवहन कंपनी का मालिक सत्तापक्ष से ताल्लुक रखता हो तो, उसके कर्मचारी वैसे भी निरंकुश व्यवहार करते देखे जाते हैं। पंजाब में डबवाली बस सर्विस के कर्मचारियों का सवारी चढ़ाने को लेकर दूसरी बस सर्विस के कर्मचारियों और हस्तक्षेप करने वाले एक पत्रकार को पीटना इसका ताजा उदाहरण है। डबवाली बस सर्विस पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार की है। डबवाली बस सर्विस के कर्मचारियों ने एक बस के चालक और संचालक को सिर्फ इसलिए पीटा कि उन्होंने उनसे पहले अपनी बस में सवारी चढ़ा ली। यह आम बात है कि निजी बसें अधिक से अधिक सवारी भरने की होड़ में दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करती हैं। कुछ बस वाले दबंगई करके दूसरी बसों को सवारी नहीं चढ़ाने देते। मुसाफिरों को भी धमकाते हैं कि वे सिर्फ उनकी बस में चढ़ें, दूसरी बस में न चढ़ें। जब डबवाली बस सर्विस के कर्मचारियों के क्रूर व्यवहार पर एक पत्रकार ने हस्तक्षेप किया तो उनको भी पीटा गया। बताया जाता है कि तीन महीने पहले भी इसी बस सर्विस के कर्मचारियों ने ऐसे ही कुछ बसवालों के साथ मार-पीट की थी।
बादल परिवार की बस में ही उसके कर्मचारियों ने पिछले साल मोगा में एक मां-बेटी के साथ बलात्कार की कोशिश की थी। तब संसद में भी यह मुद्दा उठा था और मुख्यमंत्री को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी थी। उनसे इस्तीफे तक की मांग की गई। मगर हैरानी की बात है कि उसके बाद भी इस बस सर्विस के कर्मचारियों को अनुशासित बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई। बस सेवाएं संचालित करने का लाइसेंस लोगों को आवागमन में सुविधा मुहैया कराने के मकसद से प्रदान किया जाता है। नियम-कायदों की अवहेलना करने पर कड़े दंड का भी प्रावधान है। मगर निजी बस सेवाओं के कर्मचारी मुसाफिरों का ध्यान रखना तो दूर, उलटे उनके साथ बदसलूकी करने से बाज नहीं आते। इन बसों में चलने वाली महिलाएं डरी-सहमी रहती हैं। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री के परिवार की बसों का यह हाल है तो दूसरी बस सेवाओं को अनुशासित और उनके कर्मचारियों को अच्छे व्यवहार का पाठ पढ़ाने की उम्मीद भला कितनी की जा सकती है। जब उनके कर्मचारी दूसरी निजी बसों में सवारी चढ़ाने को लेकर इस कदर आक्रामक रुख अपनाते हैं तो सरकारी बसों का क्या हाल होता होगा। यह अकारण नहीं है कि अक्सर सरकारी बसें खाली चल रही होती हैं, जबकि निजी बसों में लोगों को पांव रखने की जगह नहीं होती। इसलिए कि निजी बस वाले सरकारी बसों के चालकों और कंडक्टरों पर धौंस जमा कर निर्धारित पड़ाव पर भी बसें नहीं रोकने देते। विचित्र है कि सरकारें लोगों को सुविधाजनक सफर का भरोसा दिलाते हुए परिवहन व्यवस्था को सुधारने का दम भरती हैं, मगर बसकर्मियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना जरूरी नहीं समझतीं।