इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जो नियम-कायदे अपवाद स्थितियों में लागू करने के लिए बनाए गए हैं, खुद सरकारें उनका दुरुपयोग करने से नहीं हिचकतीं। बलात्कार और हत्या के अपराध में जेल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को लेकर हरियाणा सरकार की इस उदारता का मतलब समझना मुश्किल है, कि क्यों उसे बार-बार पैरोल दिया जाता रहा है।

हरियाणा सरकार के इस रुख पर तीखे सवाल उठ रहे थे, मगर उसकी अनदेखी करते हुए राम रहीम को पैरोल पर बाहर जाने की छूट मिलती रही। गौरतलब है कि कुछ समय पहले राम रहीम को फिर पचास दिनों की पैरोल दी गई। पिछले वर्ष भी उसे दो बार लंबी अवधि के लिए छुट्टी मिली थी। करीब दस महीने में उसे सात बार और पिछले चार वर्षों में नौ बार पैरोल दी गई।

इस तरह अब तक उसे करीब आठ महीने जेल से बाहर रहने का मौका मिल चुका है। अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने राम रहीम को बार-बार पैरोल देने को लेकर सवाल उठाए हैं और हरियाणा सरकार से कहा कि आगे वह अदालत की इजाजत के बिना राम रहीम को पैरोल न दे।

हरियाणा सरकार की दलील है कि यह सुविधा नियमों के तहत दी गई। मगर सवाल है कि एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले और तीन मामलों में सजा पाए व्यक्ति की तरह और कितने अन्य लोगों को इसी आधार पर पैरोल दी गई है। गौरतलब है कि पैरोल नियमों के तहत कैदियों को सीमित अवधि के लिए कुछ शर्तों के साथ जेल से बाहर जाने की इजाजत देना राज्य सरकारों के अधिकार-क्षेत्र में आता है।

मगर किसी खास कैदी के लिए सरकार के इस हद तक उदार हो जाने के पीछे क्या वजह हो सकती है? क्या यह अपवाद जैसी स्थितियों में या मानवीय आधार पर किसी कैदी को राहत देने के लिए बनाए गए नियम का बेजा इस्तेमाल नहीं है? क्या इसे कानूनों के सहारे अलग-अलग कैदियों के साथ भेदभाव नहीं माना जाएगा? इस मसले पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का हस्तक्षेप पैरोल जैसे नियमों में सख्त मानदंड बनाए जाने की जरूरत को रेखांकित करता है।