पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को दिल्ली पुलिस ने उसी तरह कुचल दिया, जैसे कुछ साल पहले रामलीला मैदान में चल रहे बाबा रामदेव के आंदोलन को रात में खत्म करा दिया था। कुछ दिनों पहले पहलवानों ने एलान कर रखा था कि जिस दिन नए संसद भवन का उद्घाटन होगा, उस दिन महिलाएं वहां पहुंच कर पंचायत करेंगी। इसके लिए देश भर से महिलाओं के दिल्ली पहुंचने का आह्वान भी किया गया था। महिला पंचायत की रूपरेखा भी घोषित कर दी गई थी कि कोई भी हिंसक बर्ताव नहीं करेगा। अगर पुलिस बर्बरता करती है, तो भी सत्याग्रह का रास्ता नहीं छोड़ा जाएगा।
हालांकि दिल्ली पुलिस ने उनसे अनुरोध किया था कि वे नए संसद भवन के आसपास न पहुंचें। मगर पहलवानों ने अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नए संसद भवन की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। फिर पुलिस ने बल प्रयोग किया और पहलवानों को गिरफ्तार कर लिया। उनके खिलाफ कई धाराएं लगा दीं। जंतर मंतर पर उनके तंबू उखाड़ दिए गए। वहां से उनका सारा सामान उठा कर जगह खाली करा ली गई। अब पुलिस का कहना है कि पहलवान जंतर मंतर पर धरना नहीं दे सकेंगे। अगर वे धरना देना चाहते हैं, तो उन्हें नए सिरे से इजाजत लेनी पड़ेगी, मगर पुलिस तय करेगी कि उन्हें धरने के लिए कहां जगह उपलब्ध कराई जाए।
हालांकि पहलवान अब भी जंतर मंतर पर ही धरने की मांग पर अड़े हैं, मगर पुलिस ने एक तरह से उनके आंदोलन को कुचल दिया है। इस तरह कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगे महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण का मामला भी किनारे हो गया है। इस साल फरवरी में महिला पहलवानों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए धरना शुरू किया था। तब बृजभूषण शरण सिंह को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था और इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित कर दी गई थी। मगर समिति ने कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया, जिसके चलते खिलाड़ी पिछले महीने फिर से धरने पर बैठ गए थे।
उन्हें व्यापक समर्थन मिला। हैरानी की बात है कि इतना गंभीर आरोप लगने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई, तो उसने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। तब बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। उसमें पाक्सो कानून की धारा भी लगी हुई है, जिसके तहत आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी अनिवार्य है। मगर मुकदमा दर्ज करने के बाद दिल्ली पुलिस चुप्पी साधे रही और बृजभूषण शरण सिंह मुक्त घूमते और खिलाड़ियों के खिलाफ बयान देते रहे।
दिल्ली पुलिस के रवैए से पहले ही साफ था कि वह खिलाड़ियों को थकाना चाहती है, ताकि वे अपना धरना खुद उठा लें। ऐसा नहीं हुआ, तो उसे नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में बाधा पहुंचाने का बहाना हाथ लग गया और उसने उनके आंदोलन को तहस-नहस कर डाला। यह ठीक है कि शहर की कानून-व्यवस्था बनाए रखने और नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह की गरिमा की रक्षा करने का दायित्व उस पर था। मगर अंतरराष्ट्रीय खेलों में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाली खिलाड़ियों की गुहार का क्या होगा। ऐसा नहीं माना जा सकता कि बल प्रयोग के अलावा दिल्ली पुलिस के पास उनके आंदोलन को संभालने का कोई और उपाय नहीं था। इससे तो यही तथ्य रेखांकित हुआ है कि महिला खिलाड़ियों के सम्मान को लेकर व्यवस्था के लोग गंभीर नहीं हैं।