मगर डिजिटल दुनिया के विस्तृत होते दायरे में निजता को लेकर ही सबसे अधिक खतरे बढ़े हैं। हर किसी के जैविक ब्योरे, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से जुड़ी जानकारियां, व्यावसायिक या व्यक्तिगत लेन-देन संबंधी सूचनाएं किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं दर्ज हैं।
डिजिटल संग्रह में जमा ये तमाम सूचनाएं सदा बनी रहती हैं। इसलिए इनमें सेंधमारी की आशंका हर समय बनी रहती है। इन संग्रहित ब्योरों की सुरक्षा के उपाय तमाम कंपनियां करती हैं, फिर भी उनमें सेंधमारी हो ही जाती है। जबसे स्मार्ट फोन का चलन बढ़ा है, निजी ब्योरों की चोरी और उनके दुरुपयोग की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इसके अलावा इसका एक चिंताजनक पहलू यह है कि इन संग्रहों में दर्ज डिजिटल ब्योरे कंपनियां खुद दूसरी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए साझा करती रहती हैं।
इस समस्या से पार पाने के लिए केंद्र सरकार ने डिजिटल निजी आंकड़ा संरक्षण विधेयक 2022 का मसविदा तैयार किया है। इसके तहत निजी ब्योरों का दुरुपयोग करने वाली कंपनियों पर पांच सौ करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। पहले इसमें जुर्माने की राशि पंद्रह करोड़ रुपए या संबंधित कंपनी के वैश्विक कारोबार का चार फीसद प्रस्तावित था।
जब आधार पहचान पत्र बनाने की अनिवार्यता लागू की गई थी, तो देश में इसका चौतरफा विरोध हुआ था। इसके दुरुपयोग और इससे लोगों के निजता संबंधी मौलिक अधिकार के हनन की आशंका व्यक्त की जाने लगी थी। ऐसा इसलिए कि आधार में व्यक्ति के जैविक ब्योरे डिजिटल रूप में दर्ज होते हैं और उनके जरिए उसके निजी जीवन में बहुत आसानी से ताकझांक की जा सकती है।
इसका विरोध होने पर सरकार ने भरोसा दिलाया था कि निजी डिजिटल ब्योरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, जिसमें सेंधमारी की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है। मगर अनेक लोगों ने सार्वजनिक रूप से आधार पहचान में दर्ज ब्योरों की चोरी करके दिखाया और इसे रोकने की मांग दुहराई।
फिर भी आधार पहचान पत्र न सिर्फ अनिवार्य बना रहा, बल्कि उसे लोगों के बैंक खाते, भविष्य निधि, शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी प्रक्रियाओं, सरकारी योजनाओं का लाभ पाने जैसी हर गतिविधि से जोड़ दिया गया। अब उसे मतदाता पहचान पत्र से भी जोड़ा जा रहा है। इसी तरह आपराधिक गतिविधियों में शामिल लोगों के निजी जैविक ब्योरों का एक अलग से डिजिटल संग्रह तैयार करने का प्रस्ताव है, ताकि ऐसे लोगों पर हर वक्त नजर रखी जा सके।
ऐसे में जब हर व्यक्ति के निजी ब्योरे तमाम कंपनियों, संस्थानों, संस्थाओं, छोटे-मोटे कारोबारी संगठनों तक के पास साझा हैं, उनके दुरुपयोग के खतरे दिनोंदिन बढ़ते गए हैं। अब तो कई कंपनियां लाभ के लिए अपने संग्रह में उपलब्ध लोगों के निजी ब्योरे दूसरी कंपनियों को व्यावसायिक उपयोग के सहज उपलब्ध कराती देखी जाती हैं। यही वजह है कि हर किसी के पास रोज दसियों फोन कर्ज, बीमा, स्वास्थ्य जांच, दाखिले, घरेलू कामकाज, दान, चुनाव प्रचार आदि के लिए आ ही जाते हैं।
लिहाजा, अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के जैविक ब्योरे भी आपराधिक गतिविधियों में संलग्न संगठनों, आतंकवादी समूहों के पास पहुंचते होंगे और वे चूंकि अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, लोगों की हर गतिविधि पर बहुत आसानी से नजर रख पाते होंगे। इस खतरे से सुरक्षा जरूरी है। इसलिए केंद्र का निजी डिजिटल आंकड़ा संरक्षण विधेयक इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।