कारीगर और शिल्पकार हजारों वर्षों से देश की समृद्धि का मूल आधार रहे हैं। प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी और आधुनिक उपकरण इनके काम को आसान बनाते हैं। मगर ये अकुशल, अप्रशिक्षित होते हैं तो इनका काम ही नहीं, तरक्की के रास्ते भी बंद होते हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे ही शिल्पकारों और कारीगरों को उबारने, बाजार से प्रतिस्पर्धा करने लायक और इनके काम को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की है। यह योजना मूल रूप से धोबी, बढ़ई, कुम्हार, दर्जी, मछुआरे, नाई, सुनार, लुहार, हलवाई, मोची, मूर्तिकार आदि तबकों को ध्यान में रख कर लाई गई है।
पीएम बोले- जिंदगी की रीढ़ हैं विश्वकर्मा यानी दस्तकार, कारीगर और शिल्पकार
ये ऐसे लोग हैं जिनके लिए आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में आजीविका कमाना बहुत मुश्किल हो गया है, लेकिन इनके बिना हमारी जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं। गांवों में तो बढ़ई, लुहार, टोकरी बुनने वाले जैसे तमाम कारीगरों के बिना किसी का काम ही नहीं चल पाता। इस योजना की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा भी कि जैसे शरीर में रीढ़ की हड्डी की भूमिका होती है, ठीक वैसे ही हमारी जिंदगी में विश्वकर्मा यानी दस्तकारों, कारीगरों और शिल्पकारों की अहमियत होती है। मगर जितना मुश्किल इन कारीगरों के बिना हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है, उतना ही कष्टकारी हो चला है इनका जीवन।
कारीगरों को प्रशिक्षण देने और फिर उनका काम शुरू कराने की बनी योजना
अकुशलता, कच्चे माल की कमी, उपयुक्त बाजार न मिलना और मशीनों से बने सामान से प्रतिस्पर्धा जैसे कारकों के चलते ये कारीगर और शिल्पकार आज लगभग हाशिये पर पहुंच गए हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए योजना के पहले चरण में कारीगरों को प्रशिक्षण देने और फिर उन्हें अपना काम शुरू करने, उपकरण खरीदने के लिए पंद्रह हजार रुपए का अनुदान देने का प्रावधान है। प्रशिक्षण पूरा होने पर एक प्रमाण-पत्र मिलेगा, जिससे वे मान्यता प्राप्त शिल्पकार का दर्जा हासिल कर लेंगे।
दूसरे चरण में उन्हें व्यवसाय शुरू करने के लिए पहले एक लाख और फिर दो लाख यानी कुल तीन लाख रुपए तक का ऋण दिया जाएगा। उसे प्रतिस्पर्धी बनाने, आज के युग के हिसाब से काम करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इस योजना से स्वाभाविक ही उम्मीद बनती है कि बहुत सारे अकुशल लोगों को भी स्वावलंबन की दिशा मिलेगी।
हालांकि ऐसी योजनाएं सरकारें पहले भी लागू करती रही हैं, लेकिन वे बैंकों की ऋण प्रक्रिया और अफसरशाही का शिकार होकर कागजों तक सिमट कर रह जाती रही हैं। जरूरतमंद लोग बैंकों और अफसरों के चक्कर काटते रहते हैं, लेकिन उन्हें वाजिब लाभ नहीं मिल पाता। इस कारण उनकी जिंदगी में अपेक्षित बदलाव नहीं आ पाता। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना देश के लगभग तीस लाख परिवारों को ध्यान में रखकर लाई गई है। इसमें कारीगरों और शिल्पकारों के बनाए उत्पादों और सेवाओं के लिए वैश्विक खिड़की खोलना भी एक मकसद है। पांच साल में इस पर तेरह हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।
अगर ईमानदारी से इस योजना को लागू किया गया तो यह कारीगरों-शिल्पकारों के लिए बड़ी उम्मीद की किरण कही जा सकती है, जो अपने गांव-घर में रहकर अपने परंपरागत पेशे के जरिए ही रोजी-रोटी कमाना चाहते हैं। मगर इस योजना की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि ऐसे शिल्पकारों को बाजार कितना उपलब्ध हो पाता है। अनेक सरकारी, सहकारी और स्वयंसेवी संस्थाएं हस्तशिल्पियों को बाजार उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटी हैं, मगर भारी उद्योगों के सामने उन्हें चुनौतियों से पार ले जाना कठिन बना हुआ है।