दिल्ली में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान मंच टूटने से एक महिला की मौत और सत्रह लोगों के घायल होने की घटना हर स्तर पर बरती गई लापरवाही का नतीजा है, जिसकी वजह से खुशी मनाने का एक मौका मातम की वजह बन गया। गौरतलब है कि कालकाजी मंदिर परिसर में जागरण का आयोजन किया गया था, जिसमें एक जाने-माने गायक को भजन गाने के लिए बुलाया गया था।

डेढ़ हजार से ज्यादा लोग पूरे उत्साह के साथ उसमें शामिल थे। किसी सामूहिक और सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए लोगों का उत्साहित हो जाना एक हद तक स्वाभाविक होता है और आयोजकों को यह ध्यान रखने की जरूरत होती है कि वहां की गतिविधियां लोगों के लिए खतरे का कारण न बनें। मगर संबंधित कार्यक्रम में हालत यह थी कि वहां मौजूद कई लोगों ने मंच पर जाने की कोशिश की और इस बीच भगदड़ की स्थिति बन गई। जबकि पहले से जितने लोग वहां थे, उनके बोझ से मंच के हिलने लगा था और खतरे की आशंका पैदा हो गई थी, जो चंद पलों में ही सच साबित हो गई। लोगों के धक्के से कीर्तन वाला मंच भरभरा कर गिर गया और फिर भगदड़ मच गई।

सवाल है कि पहले से ही जो खतरा सामने दिख रहा था, उसे समझना कार्यक्रम के आयोजकों को जरूरी क्यों नहीं लगा! सच यह है कि सिर्फ इस एक पहलू पर गौर करके इस हादसे से बचा जा सकता था। मगर लापरवाही का आलम बहुस्तरीय था और उसमें हर तरह से गड़बड़ियों की अनदेखी की गई। कार्यक्रम के दौरान कानून-व्यवस्था को कायम रखने के लिए पुलिस मौजूद थी, मगर खबर के मुताबिक, इस आयोजन के लिए पुलिस महकमे से कोई पूर्व-अनुमति नहीं ली गई थी।

बिना इजाजत किसी मशहूर गायक को बुला कर इतने बड़े स्तर पर आयोजित कार्यक्रम अगर होने दिया जा रहा था, तो उसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी? जाहिर है, बिना अनुमति के कार्यक्रम के लिए जहां आयोजकों को कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए, वहीं खुद पुलिस से भी पूछने की जरूरत है कि इजाजत की औपचारिकता पूरी किए बिना कोई समूह या व्यक्ति इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जमा कर कार्यक्रम कैसे संचालित कर रहा था। उन्हें रोकने या उनसे पूछने वाला कोई क्यों नहीं था?

अब आरोपियों के खिलाफ कानून के तहत मामले चलाए जाएंगे, लेकिन अगर कार्यक्रम से पहले उस आयोजन में आने वाले लोगों के सुरक्षित जमा होने से लेकर आयोजन संबंधी सभी व्यवस्थाओं का दुरुस्त होना सुनिश्चित किया जाता तो क्या अराजकता और उसके परिणामस्वरूप हादसे से बचा नहीं जा सकता था? विडंबना है कि जब-तब देश भर से धार्मिक आयोजनों में भगदड़ मचने या मंच टूटने की घटनाएं आती रहती हैं।

इसके बावजूद इनसे सबक लेने के बजाय आमतौर पर ज्यादा लोगों के जमा होने पर भी व्यवस्था संबंधी गड़बड़ियों को दूर करने या हर हाल में उससे बचने का सवाल हाशिये पर छोड़ दिया जाता है या उसकी अनदेखी की जाती है। जबकि किसी भी जगह पर क्षमता से ज्यादा लोगों के जमा होने के बाद भगदड़ या मंच टूटने की आशंका हर स्थिति में बनी रहती है। अफसोस की बात यह है कि धार्मिक या अन्य वजहों से कराए जाने वाले कार्यक्रमों के दौरान उत्साह में आकर हादसों के जोखिम के पहलू को नजरअंदाज किया जाता और उसका खमियाजा कुछ लोगों को भुगतना पड़ता है।