जब व्यक्तिगत सुविधाओं, रोजी-रोजगार और बेहतर जीवन जीने की लालसा में किसी देश के लोग नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों में जाकर बसने लगें, तो यह निश्चित रूप से उस देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। प्रतिभा पलायन को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है।
कुछ साल पहले तक युवाओं को भावनात्मक रूप से प्रेरित करने का प्रयास किया जाता रहा कि जिस देश ने उनकी पढ़ाई-लिखाई पर इतना खर्च किया है, जब सेवा देने का समय आए तो उस देश को छोड़ कर अपनी प्रतिभा का योगदान किसी और देश में देना नैतिक रूप से सही नहीं होगा। मगर इस प्रेरणा का कोई असर नहीं हुआ। उत्तरोत्तर प्रतिभा पलायन बढ़ता गया। अब स्थिति यह है कि जिनके भारत में जमे-जमाए कारोबार हैं, उनमें भी अपनी नागरिकता त्याग कर दूसरे देशों में जाकर बसने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है।
खुद केंद्र सरकार ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि पिछले साढ़े तीन वर्षों में हर दिन लगभग चार सौ उनतालीस भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है। सबसे अधिक पिछले साल सवा दो लाख से ऊपर लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। ये लोग एक सौ पैंतीस देशों में गए हैं, जिनमें पाकिस्तान और सऊदी अरब भी शामिल हैं।
आमतौर पर दूसरे देशों में जाकर बसने का प्रमुख कारण रोजी-रोजगार होता है। भारत में हर साल लाखों युवा इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा हासिल करके रोजगार की तलाश में निकलते हैं, मगर उनमें से चालीस फीसद को भी उनकी इच्छा और क्षमता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता। ऐसे में वे दूसरे देशों का रुख करते हैं।
इसके अलावा बहुत सारे युवा इसलिए भी दूसरे देशों का रुख करते हैं कि यहां उन्हें उनके काम के अनुरूप पैसा नहीं मिल पाता। कई विकसित देशों की तुलना में यहां वेतन, भत्ते और काम करने की स्थितियां बहुत खराब हैं। इसलिए भी वे मौका मिलते ही दूसरे देशों में चले जाते और फिर यहां की नागरिकता छोड़ देते हैं। बहुत सारे युवा विदेशों में पढ़ने जाते हैं और फिर वहीं की नागरिकता हासिल कर लेते हैं।
मगर पिछले कुछ वर्षों में ऐसे भी अनेक लोगों ने यहां की नागरिकता त्याग दी, जिनके यहां अपने कारोबार थे और उन्हें समेट कर वे दूसरे किसी देश में चले गए। यानी उन्हें यहां कारोबार की स्थितियां अनुकूल नहीं लगीं। इसके अलावा कई लोग असुरक्षाबोध के चलते भी कहीं और जा बसे।
जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश बन चुका है। ऐसे में माना जा रहा है कि इसे जनसांख्यिकीय लाभांश दूसरे देशों की अपेक्षा अधिक मिलेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास होगा। इसी के मद्देनजर सरकार ने कौशल विकास संबंधी कार्यक्रम चलाए हैं, अपने रोजगार शुरू करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इसके बावजूद अगर हर साल नागरिकता छोड़ने वालों की तादाद कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज हो रही है, तो इसके कारणों पर गंभीरता से ध्यान देने और उनके समाधान के प्रयास की जरूरत है। आर्थिक मोर्चे पर बेहतरी के लिए जरूरी है कि अपनी बेहतरीन प्रतिभाओं को देश में ही रह कर काम करने का संतोषजनक वातावरण तैयार किया जाए। रोजगार के नए अवसर केवल कैशल विकास से सृजित नहीं होते, इसमें श्रमशक्ति को मुख्यधारा से जोड़ने वालों के उद्यम और प्रतिभा की भी जरूरत होती है।