कई बार कोई शख्स अपने व्यक्तित्व के किसी ऐसे खास पहलू से पहचाना जाने लगता है, जो बहुत सारे लोगों के दिल-दिमाग में ठहर-सा जाता है। अमीन सयानी की आवाज और उसके जरिए किसी कार्यक्रम की प्रस्तुति के अंदाज में वही जादू और सम्मोहन था, जिसकी वजह से आज दुनिया भर में लोग उन्हें जानते और याद करते हैं।

अब उनके जाने के बाद लोग उन्हें बस याद कर पाएंगे, मगर उनकी आवाज साथ में आसपास कहीं गूंज रही होगी। दरअसल, उनके व्यक्तित्व को एक पहचान देने में उनकी आवाज के साथ किसी कार्यक्रम को पेश करने का उनका सलीका और अंदाज उन तमाम लोगों के दिल में आज भी बसा होगा, जो उस दौरान रेडियो सीलोन पर ‘बिनाका गीत माला’ सुनने के लिए अलग से वक्त निकालते थे।

उस दौर के लोग याद कर सकते हैं कि कैसे श्रोता रेडियो सीलोन का सिग्नल लगाने के लिए आसपास जगह बदलते थे, उसकी ‘लाल सुई’ को खिसकाते या रेडियो का रुख बदलते थे, तो कभी आवाज धीमी होने या टूटने की वजह से कान में रेडियो लगा कर गौर से सुनने की कोशिश करते थे।

रेडियो पर उनके किसी कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही कई बार यह भी होता था कि अमीन सयानी की आवाज बाद में आती थी, सुनने वाले किसी व्यक्ति के मुंह से उसी अंदाज में पहले निकल जाता था- ‘बहनों और भाइयों..!’ उस दौर में रेडियो के जरिए जिस स्वरूप में लोगों को मनोरंजन मिल रहा था, उसमें अमीन सयानी ने अपने कार्यक्रमों से एक खास तरह की गरिमा भरी थी।

उनके नाम कई रिकार्ड और पुरस्कार हैं। मगर सबसे अहम पहलू यह था कि क्लिष्ट भाषा के बजाय वे जिस बोलचाल की जुबान में कार्यक्रम पेश करते थे, वह साहित्य प्रेमियों से लेकर आम लोगों तक के दिल में उतरती थी। न जाने कितने लोग होंगे, जो उनके जरिए हिंदी के साथ उर्दू, फारसी शब्दों और गीतों से जुड़े ब्योरों से पहली बार रूबरू हुए होंगे।

आज तकनीक की दुनिया ने इतना तो कर ही दिया है कि मशहूर कार्यक्रम बिनाका गीत माला की यादों पर केंद्रित ‘सारेगामा कारवां’ से लेकर अन्य रेडियो शृंखलाओं और साक्षात्कारों के जरिए लोग जब चाहे उनकी आवाज और उनके अंदाज के साथ हो लेंगे, मगर इसके लिए उनके स्वर की संवेदना के सम्मोहन में भी गहरे उतरना होगा।