इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध में प्राथमिक जरूरत इस बात की है कि किसी भी आधार पर सबसे पहले हमले रोके जाएं, क्योंकि इससे अब वहां मानवता के सामने संकट गहराने की स्थिति खड़ी हो चुकी है। निश्चित तौर पर आतंकवाद को करारा जवाब दिया जाना चाहिए, लेकिन अगर इस क्रम में व्यापक पैमाने पर आम लोग मारे जाने लगें और आतंकवादियों को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा हो तो ऐसे हमले हमेशा ही सवालों के कठघरे में होंगे।
इसलिए ब्रिक्स की बैठक में भारत की यह मांग काफी अहम है कि आतंकवाद से कोई समझौता नहीं होना चाहिए, लेकिन फिलिस्तीन की चिंता का स्थायी समाधान हो। यह छिपा नहीं है कि हमास के हमले के बाद इजराइल की प्रतिक्रिया से शुरू हुए युद्ध ने जो शक्ल अख्तियार कर ली है, उसका शिकार केवल आम लोग हो रहे हैं, भारी तादाद में बच्चे तक मारे जा रहे हैं। दूसरी ओर, युद्ध में बंधक बनाए गए लोगों का मुद्दा एक अलग मानवीय सवाल खड़ा कर रहा है कि दो सशस्त्र पक्षों के टकराव में साधारण लोगों को अपना कवच क्यों बनाया जा रहा है।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से हमास और इजराइल के बीच युद्ध के दौरान बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई की मांग जोर पकड़ रही है और इसके साथ ही दुनिया भर में इस इलाके में युद्ध रोकने की आवाजें गूंजने लगी हैं। शायद यही वजह है कि बुधवार को इजराइल की कैबिनेट ने एक अस्थायी युद्ध विराम को मंजूरी दे दी है।
हालांकि इसकी मुख्य वजह उन पचास बंधकों की रिहाई है, जिनकी सुरक्षित वापसी के लिए इजराइल ने हमास के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत चार दिनों के युद्ध विराम के दौरान बंधक रिहा किए जाएंगे। साथ ही अतिरिक्त दस बंधकों की रिहाई पर युद्ध विराम को एक और दिन के लिए बढ़ाया जाएगा।
यों यह विचित्र है कि एक ओर बंधकों को आजाद कराने के लिए युद्ध को अस्थायी तौर पर रोका जाएगा, मगर दूसरी ओर गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर जारी इजराइली गोलाबारी, मिसाइल हमलों में अगर आम लोगों की जान जा रही है तो उसे रोकना किसी की प्राथमिकता में नहीं है। हालत यह हो गई है कि युद्ध के दौरान सुरक्षित पनाहगाह के तौर पर घोषित अस्पतालों को भी हमलों का निशाना बनाया जा रहा है और साधारण नागरिकों की जान जा रही है।
जाहिर है, यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है, मगर इस पर सवाल उठने के बावजूद इजराइल के हमले जारी हैं और इसमें वैसे आम लोग मारे जा रहे हैं, जो किसी भी रूप में युद्ध के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। ऐसे में सबसे पहली जरूरत हमलों पर रोक लगाने की होनी चाहिए। अस्थायी युद्ध विराम जैसे तात्कालिक उपायों के मुकाबले स्थायी समाधान की राह निकालने के लिए सभी स्तर पर पहल की जानी चाहिए।
इस लिहाज से देखें तो भारत की मांग की अपनी प्रासंगिकता है। भारत पहले भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का हमेशा समर्थन करता रहा है। इसलिए ब्रिक्स की बैठक में भी भारत का यही स्पष्ट रुख है कि आतंकवाद से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। मगर इस क्रम में फिलिस्तीनी नागरिकों के सामने जिस स्तर का संकट खड़ा हो गया है, उसकी चिंता भी वाजिब है।
एक स्थायी, ठोस और नीतिगत हल ही मौजूदा समस्या को खत्म कर सकता है। फिलिस्तीन की चिंताओं को दूर करने का आह्वान करते हुए भारत ने जो ‘दो राज्य’ नीति के तहत समाधान की बात कही है, वह इसी सरोकार से जुड़ा है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि युद्ध के बजाय शांति और संवाद ही किसी समस्या के समाधान का रास्ता है।