यह महज संयोग नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के राष्ट्र के नाम आखिरी संबोधन में आतंकवाद को लेकर चिंता जताते हुए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया के देशों की तरफ अंगुली उठाई और उधर पाकिस्तान सरकार ने जैश-ए-मोहम्मद के दफ्तरों पर छापे मार कर उसके कई सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमले के बाद से अमेरिका लगातार पाकिस्तान पर दबाव डालता रहा है कि वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करे। उसने पाकिस्तान को मिलने वाली सामरिक और आर्थिक मदद भी रोक दी थी। अब बराक ओबामा ने साफ कहा है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान अलकायदा और आइएसआइएस की पनाहगाह हो सकते हैं और इन दोनों से हमारे लोगों को खतरा है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई रुकनी नहीं चाहिए। पाकिस्तान आमतौर पर आतंकवादी संगठनों पर नकेल कसने के मामले में भारत की मांगों को नजरअंदाज करता रहा है, पर अमेरिकी दबाव की अनदेखी हमेशा उसके लिए मुश्किल होती है। अमेरिकी दबाव का ही नतीजा है कि उसने पठानकोट हमले से जुड़े दस्तावेजों को उस तरह निराधार साबित करने की कोशिश नहीं की जैसे मुंबई और दूसरे हमलों के मामले में करता आ रहा था। यह भारत की भी रणनीतिक सफलता कही जा सकती है। भारत सरकार ने संयत रहते हुए कोई तल्ख बयानबाजी या बदले की राजनयिक कार्रवाई नहीं की। वह लगातार शांति वार्ता की शुरू हुई प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के पक्ष में रही है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक दिन पहले तक लोगों को यह भरोसा दिलाया कि पाकिस्तान से सकारात्मक कार्रवाई की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद के दफ्तरों पर छापे मार कर भारत के इस भरोसे को पुख्ता किया है।

पाकिस्तान की ताजा कार्रवाई ऐसे समय हुई है, जब दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच तय बातचीत को लेकर असमंजस बना हुआ है। एक दिन बाद यह बातचीत होनी है। पाकिस्तान ने यह भी यकीन दिलाया है कि पठानकोट हमले की जांच संतोषजनक तरीके से चल रही है और वह जल्दी ही जांच अधिकारियों की एक टीम पठानकोट वायुसेना अड्डे पर भी भेजेगा। इस कार्रवाई से न सिर्फ दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच बातचीत के सिलसिले को लेकर बना असमंजस टूटा है, बल्कि पाकिस्तान अमेरिका को भी संतुष्ट कर सकेगा कि वह उसकी मंशा के अनुरूप कदम बढ़ा रहा है। मगर ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की, पर माहौल सामान्य होते ही उसने फिर पुरानी राह पकड़ ली। जिन संगठनों पर उसने प्रतिबंध लगाया था, वे नाम बदल कर फिर से सक्रिय हो गए। उनके मुखिया सरेआम घूमते और तकरीर देते रहे हैं। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के नेता इसके उदाहरण हैं। अब देखना है कि पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद के नेताओं के खिलाफ कितना कठोर कदम उठा पाता है। पेरिस हमले के बाद अभी अमेरिका और उसके मित्र देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को तीसरे युद्ध की तरह देख रहे हैं, इसलिए पाकिस्तान किसी तरह की टालमटोल से बचना चाहेगा। पूरी दुनिया में जाहिर हो चुका है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह है, इसलिए वहां की हुकूमत खासे दबाव में है। ऐसे में भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की मदद से लगातार यह दबाव बनाए रखना होगा कि पाकिस्तान न सिर्फ आतंकी संगठनों पर कुछ समय के लिए नकेल कसे, बल्कि उनके नेताओं और प्रशिक्षण शिविरों को पूरी तरह निष्क्रिय करने की भरोसेमंद कार्रवाई करे।