चर्चित फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर में ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर आतंकवादियों ने पत्रिका के संपादक सहित बारह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह अभिव्यक्ति का गला घोंटने की अब तक की सबसे जघन्य कार्रवाई है। साप्ताहिक पत्रिका अपने प्रगतिशील नजरिए, खासकर धार्मिक विसंगतियों, पोंगापंथ, धार्मिक और राजनीतिक शख्सियतों पर तीखे रवैये के लिए जानी जाती है। कई दफा पत्रिका के व्यंग्य काफी तल्ख हो जाते थे, जो धार्मिक उन्मादियों को रास नहीं आते थे।
मगर पत्रिका के संपादक स्टीफन शार्बोनिये इस बात से कभी बिदके नहीं। पत्रिका के साहसिक तेवर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब डेनमार्क के एक अखबार में पैगम्बर को लेकर एक व्यंग्यचित्र छपा और उस पर कुछ कट््टरपंथी सरगनाओं ने कार्टूनिस्ट का सिर कलम कर देने का फरमान जारी किया तो शार्ली एब्दो ने वह कार्टून और साथ में अन्य कार्टून भी प्रकाशित किए। तभी से इस पत्रिका के संपादक स्टीफन शार्बोनिये को अंजाम भुगतने की धमकियां मिल रही थीं। तीन साल पहले पत्रिका के दफ्तर पर हमला हुआ भी। सरकार ने शार्बो को सुरक्षा दी। बाद में पत्रिका पर एक मुकदमा भी हुआ, जो पत्रिका के हक में गया। पत्रिका ने अपना अंदाज और तेवर कायम रखा। यहां तक कि शरिअत की विसंगतियों के मजाक में भी एक अंक निकाला। एक रोज पहले ही शार्बो ने आइएसआइएस के सरगना अल बगदादी के बारे में भी एक व्यंग्यचित्र प्रसारित किया था। जाहिर है, पत्रिका का यह रुख चरमपंथियों की आंखों में किरकिरी बना हुआ था।
हालांकि पत्रिका शार्ली एब्दो ने केवल इस्लाम को लेकर तीखे व्यंग्य किए हों, ऐसा नहीं है। वह अन्य धर्मों के विसंगत पहलुओं पर भी टीका करती रही। ईसा मसीह पर एक विवादास्पद कार्टून हाल ही में छापा था। धार्मिक आस्थाओं पर किस हद तक मीडिया में चोट होनी चाहिए, यह विचार की बात है। अक्सर धर्म तर्कों से परे भावनाओं का व्यापार होता है, जहां बाहरी टीका-टिप्पणी को नाजायज दखलअंदाजी, यहां तक कि धर्म पर ‘हमला’ समझ लिया जाता है। फिरे दिमाग वाले कट््टरपंथी और उनके आतंकवादी संगठन बदले की ऐसी अनुचित और अमानवीय योजनाओं को अंजाम देने लग जाते हैं जो अंतत: उनके धर्म को नुकसान पहुंचाती हैं। पर हथियार के बल पर अपनी ‘बात’ मनवाने या अपनी प्रतिक्रिया का इजहार करने वाले आतंकवादियों में इतना विवेक कहां से आ सकता है कि वे मीडिया के विश्लेषण या व्यंग्य को समझें और उससे कुछ सीखें। शार्ली एब्दो पर हुए हमले की जितनी निंदा की जाए कम है। पत्रिका पर हमला हर पत्रकार की कलम और जुबान पर हमला है।
हो सकता है पत्रिका के व्यंग्यचित्रों में अधिक तल्खी रही हो, उनमें अतिरंजना भी रही हो लेकिन इसका यह अर्थ कभी नहीं हो सकता कि उसकी प्रतिक्रिया कानून को अपने हाथ में लेने और खूनी पंजों से अभिव्यक्ति का गला घोंट देने में प्रगट हो। मगर इस बुरे दौर में यह विवेक भी बनाए रखने की जरूरत है कि किसी धर्म और उस धर्म के आम अनुयायियों को आतंकवाद से जोड़ कर न देखा जाए। इस हमले की निंदा पेरिस के इमाम से लेकर भारत के मुसलिम नेताओं तक ने की है और इसे इस्लाम विरोधी करार दिया है। आतंकवाद हमेशा कुछ भटके हुए नासमझ और हिंसापरस्त लोगों का काम होता है, जो किसी एक धर्म में ही नहीं पाए जाते। धर्म की आड़ में वे अपनी कुंठा जाहिर करने की कोशिश जरूर करते हैं। जाहिर है, समाज में ऐसे वक्त में धार्मिक सहिष्णुता, विवेक और सम्यक नजरिए के निर्वाह की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta