कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की, जिसका मकसद देश में पुरुष-स्त्री के बीच असंतुलित अनुपात में सुधार करना है। लेकिन उसके लिए सुचिंतित कार्यक्रम बनाने और उन पर अमल करने के बजाय कुछ राज्यों ने जिस तरह सिर्फ प्रचार पर जोर देना शुरू किया है, उसके शायद बहुत ठोस नतीजे सामने नहीं आएं।

हरियाणा में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के प्रचार के लिए फिल्म अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा को ब्रांड एंबेसडर बनाने की घोषणा के साथ जिस तरह विवाद सामने आया है, वह इसके विरोधाभासों को दर्शाता है। एक ओर राज्य में महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने परिणीति चोपड़ा को ब्रांड एंबेसडर बनाने की बात कही तो दूसरी ओर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने इस पर सवाल उठा दिया। उनका मानना है कि स्वास्थ्य विभाग बेटियां बचाने में सक्षम है और इसके लिए न तो किसी बाहरी ब्रांड की जरूरत है न किसी हीरो-हीरोइन की।

यह फैसला करने में संभवत: अपनी उपेक्षा से विचलित स्वास्थ्य मंत्री ने इसके लिए परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर निशाना साधा और उन्हें ‘बाहुबली’ भी बताया। इससे एक सवाल जरूर उठा है कि अगर सरकार बेटियों को बचाने या पढ़ाने को लेकर गंभीर है तो उसके लिए नीतिगत पहल और जमीनी स्तर पर व्यावहारिक उपायों को लागू करने के बजाय किसी फिल्मी सितारे के साथ प्रचार की जरूरत क्यों होनी चाहिए!

यह छिपा नहीं है कि हरियाणा में पुरुष-स्त्री अनुपात देश भर में सबसे खराब है। प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की गिरती तादाद ने राज्य में एक ऐसे असंतुलित समाज की भूमिका रच दी है, जिसका खमियाजा सबको उठाना पड़ रहा है। जाहिर है, इसके लिए न सिर्फ अल्ट्रासाउंड के जरिए लिंग जांच और कन्याभ्रूण हत्या जैसे चलन के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करके चिकित्सा जगत की भूमिका को दुरुस्त करने, बल्कि पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित जड़ सामाजिक चेतना पर चोट करने वाले जमीनी कार्यक्रम बनाए जाने की जरूरत है।

PHOTOS: परिणीती चोपड़ा बनीं ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान की ब्रांड एम्बेसडर 

हैरानी की बात यह भी है कि जो राज्य सरकार लगातार धन की कमी का रोना रो रही हो, वह सिर्फ प्रतीकात्मक प्रचार के लिए नियुक्त की गई ब्रांड एंबेसडर परिणीति चोपड़ा को दस करोड़ रुपए कहां से दे देती है। यह विडंबना दूसरे क्षेत्रों में भी देखी जा रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने किसान चैनल की शुरुआत की, उसके लिए अमिताभ बच्चन को ब्रांड एंबेसडर बहाल किया। इसके एवज में उन्हें छह करोड़ इकतीस लाख रुपए दिए जाने की खबर आई, जबकि किसान चैनल का कुल बजट महज पैंतालीस करोड़ रुपए है।

पिछले कुछ सालों से अलग-अलग राज्य भी अपने या किसी खास कार्यक्रम के प्रचार के लिए फिल्मी सितारों को ब्रांड एंबेसडर नियुक्त कर रहे हैं और इस मद में करोड़ों रुपए बहा रहे हैं। सवाल है कि जिस अभियान को प्रोत्साहित करने के मकसद से फिल्मी सितारों को इतने पैसे दिए जाते हैं, उसी मद में खर्च करने के सवाल पर धन की कमी का बहाना क्यों बनाया जाता है। फिल्मी सितारों को दिया जाने वाला धन क्या जमीनी स्तर पर खर्च नहीं किया जा सकता? अब आकलन इस बात का भी होना चाहिए कि किसी खास कार्यक्रम या अभियान के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर फिल्मी सितारों को ब्रांड एंबेसडर बनाने और उनसे प्रचार कराने का कितना फायदा हुआ!

 

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