इजरायल के हमलों से तबाह फिलिस्तीनी आम नागरिकों के संकट और उस समूचे इलाके में उपजे त्रासद हालात को देखते हुए सबसे पहली जरूरत यही है कि किसी भी तरह युद्ध विराम हो। इस क्रम में संयुक्त राष्ट्र में कई स्तर पर लगातार कोशिशें चल रही हैं। संयुक्त राष्ट्र आम सभा में युद्ध विराम से संबंधित एक प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। मगर उसके बाद भी युद्धग्रस्त इलाके में हमलों से आम लोगों को कोई राहत नहीं मिल सकी।
दरअसल, युद्ध के हालात में बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि सुरक्षा परिषद का रुख किसी प्रस्ताव को लेकर क्या रहता है। इस लिहाज से फिलिस्तीन के आम नागरिकों की मुश्किलों को कम करने के लिए तत्काल और विस्तारित मानवीय संघर्ष विराम की मांग वाले एक प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में अंगीकार किया जाना वक्त का तकाजा है।
पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव के पक्ष में बारह मत पड़े। हालांकि इस प्रस्ताव पर मतदान से अमेरिका, ब्रिटेन और रूस बाहर रहे। इजरायल ने इसे खारिज कर दिया। इसके बावजूद सुरक्षा परिषद में मानवीय संघर्ष विराम को लेकर बहुमत के समर्थन को शांति की राह में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।
यह अपने आप में एक बड़ी त्रासदी है कि इजरायली हमला अब जो शक्ल ले चुका है, उसमें फिलिस्तीन की एक बड़ी आबादी भयावह तकलीफों से गुजर रही है। इस हमले में फिलिस्तीन के स्वास्थ्य तंत्र तक को नहीं बख्शा गया है और अस्पतालों पर भी बमबारी की जा रही है। आम मरीजों के साथ-साथ हमले के शिकार लोगों का इलाज भी नहीं हो पा रहा है।
बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मुश्किल की बस कल्पना की जा सकती है। जबकि किसी भी युद्ध के दौरान अस्पतालों को सबसे सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है और युद्ध के दौरान भी ऐसी जगहों पर हमला न करने को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए गए हैं। मगर ऐसा लगता है कि युद्ध की स्थितियों में न्यूनतम मानवीय तकाजे के मद्देनजर जो अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए गए हैं, उसका खयाल रखना भी जरूरी नहीं समझा जा रहा।
गौरतलब है कि इस युद्ध में अब तक करीब ग्यारह हजार लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें चार हजार से ज्यादा बच्चे थे। गाजा पट्टी के एक बड़े इलाके को इजरायल ने खाली करने का फरमान सुनाया था, जिसके बाद कई लाख लोग वहां से दूसरे इलाकों में विस्थापित हुए। वहां खाना-पानी, आवास और बुनियादी सुविधाओं का जैसा संकट पैदा हुआ है, वह मानवता के सामने एक गंभीर चुनौती है।
खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस स्थिति पर गहरी चिंता जता चुका है। ऐसे में दुनिया के तमाम संवेदनशील लोगों की यही सदिच्छा होगी कि किसी भी हाल में युद्ध को रोका जाए। यों भी जिन मसलों पर फिलिस्तीन और इजरायल के बीच टकराव है, उसका आखिरी और दीर्घकालिक समाधान संवाद के जरिए ही निकाला जा सकता है। युद्ध में शक्ति प्रदर्शन और बेलगाम हमले में मारे जाते हैं आम लोग और उनमें भी खासकर महिलाएं और बच्चे, जो ऐसे हालात के लिए कतई जिम्मेदार नहीं होते।
ऐसे में न केवल नैतिक तकाजे के मुताबिक, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खयाल करके युद्ध विराम सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसलिए संयुक्त राष्ट्र के बाकी देशों के साथ-साथ अब अमेरिका, ब्रिटेन और रूस जैसे देशों को भी अपने रुख पर पुनर्विचार कर युद्ध विराम लागू करा कर संवाद की स्थितियां बहाल कराने पर जोर देना चाहिए।
