उम्मीद की जाती है कि एक संप्रभु देश दूसरे देश की संप्रभुता का सम्मान करेगा और उसके आंतरिक मामलों में तभी रुचि लेने या राय जाहिर करने के बारे में विचार करेगा जब उसकी ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव सामने आए। यों भारत का पड़ोसी देश होने के बावजूद पाकिस्तान का रुख शायद ही कभी ऐसा रहा है, जिसे दोस्ताना कहा जा सके। इसके बावजूद कई बार संबंध सुधार की प्रक्रिया के दौरान हालात में बदलाव की उम्मीद की जाती रही। लेकिन आज भी यह साफ देखा जा सकता है कि न केवल भारत और पाकिस्तान में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली राजनयिक गतिविधियों के दौरान पाकिस्तान ज्यादातर मौके पर भारत को निशाना बनाने से नहीं चूकता है। खासतौर पर कश्मीर के मसले पर उसकी ओर से विश्व जनमत को प्रभावित करने की कोशिशें छिपी नहीं रही हैं।
कभी वह संयुक्त राष्ट्र के मंच पर तो कभी किसी देश में जाकर बिना संदर्भ के भी कश्मीर पर अपने बेमानी विचार जाहिर करने लगता है। यह अलग बात है कि इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दें, तो लगभग सभी देशों ने कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान की शिकायतों को बेमौके का बेसुरा राग ही माना है।
विडंबना यह है कि कई बार कुछ देश पाकिस्तान की ओर से फैलाए जाने वाले भ्रम से नहीं बच पाते हैं। मसलन, मंगलवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अपनी चीन की यात्रा के दौरान अपने समकक्ष चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बेजिंग में हुई वार्ता के दौरान एक बार फिर कश्मीर मुद्दा उठाया। अफसोस की बात यह रही कि चीन को जहां पाकिस्तान की ओर से उठाए गए इस मसले पर सावधानी से राय जाहिर करना चाहिए था, वहां उसने कहा कि वह मौजूदा हालात पर पूरा ध्यान दे रहा है। इस संबंध में दोनों देशों की ओर से एक साझा बयान भी जारी किया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा का जिक्र था।
अव्वल तो दो अन्य देशों ने यह कैसे मान लिया कि उन्हें भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी पहलू से विचार करने का अधिकार है! दूसरे, भारत को लेकर पाकिस्तान का उतावलापन कोई छिपी बात नहीं रही है, लेकिन उसका पक्ष सुनते हुए चीन ने अपनी स्थिति का ध्यान रखना जरूरी क्यों समझा? यह बेवजह नहीं है कि भारत ने दोनों देशों के इस रुख पर तीखी आपत्ति जाहिर की और साफ शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और इससे संबंधित मुद्दे देश के आंतरिक मामले हैं।
हालांकि इस तरह का यह कोई पहला मौका नहीं है। करीब साढ़े पांच महीने पहले पाकिस्तान में चीन के राजदूत ने कहा था कि कश्मीर विवाद पर चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा। लेकिन भारत की ओर से तीखी आपत्ति जताने के कुछ ही दिन बाद चीन ने कहा कि कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान द्विपक्षीय संवाद के जरिए समाधान की तलाश करें। मुश्किल यह है कि ऐसी असुविधाजनक स्थिति पैदा होने के बावजूद पाकिस्तान का नकारात्मक रुख अक्सर सामने आता रहता है। लेकिन क्या चीन को यह समझने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान अक्सर ही कश्मीर को लेकर एक विचित्र हड़बड़ी में रहता है और उसके इस भाव के असर में आना अपनी विश्वसनीयता को भी कसौटी पर रखना है?
यह उम्मीद की जानी चाहिए कि खुद पाकिस्तान और चीन भी किसी देश की संप्रभुता के सम्मान को लेकर उतने ही गंभीर होंगे, जितना खयाल वे अपनी संप्रभुता का रखते हैं। इसी सिरे से भारत ने भी चीन सहित दूसरे देशों से यह उम्मीद जताई है कि कि वे उसके आंतरिक मामलों में टिप्पणी नहीं करें और उसकी संप्रभुता का सम्मान करें।
