पहाड़ों पर बर्फबारी और हिमस्खलन से मार्ग अवरुद्ध हो जाना सर्दियों में हर वर्ष की सामान्य घटना जैसा है। मगर अब जिस तरह ये घटनाएं तबाही का सबब बन रही हैं, वह चिंता का विषय है। कश्मीर के सोनमर्ग हंग इलाके में पहाड़ से बर्फ की चट्टानें गिरने से वहां बह रहा नाला अवरुद्ध हो गया। इसके चलते नाले का पानी उफन कर सड़क पर बहना शुरू हो गया।

गनीमत है कि उस तेज धार पानी में जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, मगर सड़क को जो क्षति पहुंची उससे लंबे समय तक लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ेगा। पिछले वर्ष इसी तरह हिमस्खलन में दो मजदूर दब कर मर गए थे। हिमाचल प्रदेश के मनाली इलाके में भी हिमस्खलन से ऐसी दुर्घटनाएं सामने आती रहती हैं। हालांकि हिमस्खलन वाले इलाकों में खतरे की चेतावनी वाली तख्तियां लगी होती हैं, फिर भी प्रशासन की मुस्तैदी और समय पूर्व दुर्घटना की चेतावनी जारी न हो पाने की वजह से दुर्घटनाएं हो ही जाती हैं।

मगर पहाड़ों की पीड़ा दिन-ब-दिन इस बात से अधिक बढ़ती जा रही है कि वहां विकास के नाम पर अतार्किक निर्माण कार्य होने लगे हैं। पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए सड़कों, पुलों, होटल, मोटल, दुकानों आदि के निर्माण बड़े पैमाने पर होने लगे हैं। इससे पहाड़ों को तोड़ने, नदियों और नालों की जलधारा मोड़ने या अवरुद्ध कर देने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।

सैलानियों को लुभाने की मंशा से बहुत सारी नदियों के किनारे और उनके भीतर तक अतिक्रमण कर खाने-पीने, मनोरंजन, यहां तक कि रुकने-ठहरने के लिए ढांचे खड़े कर लिए गए हैं। उत्तराखंड में बादल फटने की वजह से हुई तबाहियों के पीछे बड़ा कारण यही था कि खुदाई के चलते वहां के पहाड़ हिल कर भुरभुरे हो गए हैं, नदियों की जल संग्रहण क्षमता काफी घट गई है।

इससे नदियों का पानी उफन कर सड़कों और रिहाइशी इलाकों में पहुंच जाता है। कश्मीर के सोनमर्ग में भी यही हुआ। हालांकि प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए समस्या पर काबू पा लिया, मगर यह इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में ऐसी दुर्घटनाएं बड़ी तबाही का कारण भी बन सकती हैं।