महामारी के इस दौर में कई तरह की मुश्किलें पैदा हो गई हैं। जन-जीवन कैसे सामान्य ढंग से चले, इसकी चिंता सरकारों के सामने बनी हुई है। जिन गतिविधियों को सुरक्षा उपायों का ध्यान रखते हुए संचालित किया जा सकता है, उन्हें शुरू कर दिया गया है, पर शैक्षणिक गतिविधियां बाधित हैं। सबसे बड़ी मुश्किल उन विद्यार्थियों के सामने पैदा हो गई है, जिन्हें तकनीकी संस्थानों में दाखिला लेना है या फिर उन विद्यार्थियों के सामने, जो विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। परीक्षाएं आयोजित न हो पाने की वजह से इन विद्यार्थियों को अपना एक पूरा साल बर्बाद होता नजर आ रहा है।

इसके मद्देनजर राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए ने अगले महीने नीट और जेईई परीक्षाओं के लिए तारीखों की घोषणा कर दी। इस पर कुछ लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई कि इससे कोरोना संक्रमण के और फैलने का खतरा बढ़ेगा, विद्यार्थियों की सेहत के साथ खिलवाड़ करना ठीक नहीं। पर अदालत ने कहा कि जीवन चलते रहना चाहिए, उसे इस तरह रोकना ठीक नहीं। उसने एनटीए को तय समय पर परीक्षा कराने की इजाजत दे दी। अब छह गैर-भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने अदालत से इस फैसले पर पुनर्विचार की गुजारिश की है।

इसी तरह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को निर्देश दिया है कि वे सितंबर के अंत तक अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं संपन्न कराएं। इसे लेकर भी वही तर्क दिया जा रहा है कि जिस तरह कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, उसमें परीक्षाएं कराना खतरे से खाली नहीं है। कई लोगों का कहना है कि परीक्षाएं टाल दी जाएं, तो कई विद्यार्थियों के मूल्यांकन का कोई और तरीका निकाले जाने के पक्ष में हैं।

इस पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया कि अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा लिए उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण घोषित नहीं किया जा सकता। उधर एनटीए और यूजीसी का कहना है कि परीक्षा केंद्रों पर सभी तरह के सुरक्षात्मक उपायों का मुस्तैदी से पालन किया जाएगा, इसलिए संक्रमण का किसी तरह का खतरा नहीं हो सकता। पर बहुत सारे लोगों के सामने संक्रमण के अलावा परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में आने वाली दिक्कतें भी बड़ा कारण हैं। कई जगहों पर बाढ़ की स्थिति है। बसें और रेलें नहीं चल पा रही हैं। ऐसे में दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले बहुत सारे विद्यार्थियों के सामने परीक्षा में शामिल होने को लेकर कई तरह की कठिनाइयां पैदा हो गई हैं।

परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसियों और संस्थाओं की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे विद्यार्थियों की पढ़ाई का पूरा साल नष्ट न होने दें। पहले ही करीब छह महीने बर्बाद हो चुके हैं। कोरोना संकट कब तक बना रहेगा, यह तय नहीं है। ऐसे में उनके सामने भी प्रश्न है कि वे कब तक परीक्षाओं को टालती रह सकती हैं। फिर परीक्षा और मूल्यांकन का एक तय स्वरूप है, जिसे अचानक नहीं बदला जा सकता, उसकी लंबी प्रक्रिया है।

कुछ पाठ्यक्रमों में विश्वविद्यालयों ने पहले और दूसरे वर्ष के विद्यार्थियों के परियोजना आधारित मूल्यांकन का तरीका अपनाया, पर यही तरीका अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के साथ नहीं अपनाया जा सकता, क्योंकि इस परीक्षा के आधार पर उन्हें डिग्री दी जानी है। इस तरह बहुत सारे विद्यार्थियों के साथ अन्याय हो सकता है। अब विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को सोचना है कि वे परिस्थितियों के मद्देनजर इसका कैसे हल निकालें।