मौजूदा वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था की जो हालत रही है, उससे यह अनुमान लगा पाना कोई मुश्किल नहीं है कि अगले वित्त वर्ष की तस्वीर कैसी होगी। शुक्रवार को संसद में पेश 2019-20 की आर्थिक समीक्षा बता रही है कि आने वाला वक्त भी कम चुनौती भरा नहीं है। चालू वित्त वर्ष की हर तिमाही में गिरावट इस बात का प्रमाण है कि अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र मंदी की मार झेल रहे हैं। औद्योगिक उत्पादन में भारी गिरावट, महंगाई और बेरोजगारी का सारे रिकार्ड तोड़ देना, सरकारी खजाने की बिगड़ती हालत, बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ता संकट, कृषि क्षेत्र की समस्याएं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट से जो हालात बन गए हैं, उनको देख कर लगता है कि आने वाले दिनों में सुधार की राह आसान नहीं होगी।
आर्थिक समीक्षा का लब्बोलुआब यही है कि मौजूदा वित्त वर्ष में हालात खराब तो रहे हैं, लेकिन अभी दूसरी छमाही में सुधार के पूरे आसार हैं। सरकार को सबसे ज्यादा उम्मीद तो यह है कि कुछ महीने पहले कॉरपोरेट करों में कटौती करते हुए उद्योग जगत को जो राहत दी थी, उसका असर शायद मार्च तक नजर आए। इस साल वृद्धि दर पांच फीसद के इर्दगिर्द ही रही है, ऐसे में अगले वित्त के लिए आर्थिक वृद्धि दर छह से साढ़े छह फीसद रहने का जो अनुमान व्यक्त किया गया है, उसे लेकर संशय तो है ही। हालांकि मंदी से सबक लेते हुए अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार जो कदम उठा रही है, उनका असर निश्चित रूप से दिखेगा, भले कुछ क्षेत्रों में ही दिखे।
पर सवाल है कि दूसरी छमाही में आखिर ऐसा क्या हो जाएगा जिससे वृद्धि दर पांच फीसद से बढ़ने की उम्मीद सरकार को है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विदेशी निवेश बढ़ने, मांग बेहतर होने और जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी सहित ऐसे दस कारक हैं जो वृद्धि को रफ्तार दे सकते हैं। पर तीसरी तिमाही तक आंकड़ों पर नजर डालें तो निवेश, मांग, उत्पादन और जीएसटी संग्रह जैसे मोर्चों पर कोई संतोषजनक प्रदर्शन देखने को नहीं मिला है। पिछले कुछ महीनों में जीएसटी संग्रह लगातार अनुमान से कम ही रहा है। सरकार ने माना है कि सरकारी बैंकों को दुरुस्त करने के साथ ही ऐसे कदम भी उठाने जरूरी हैं जो बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बनाएं। कारोबार शुरू करने वालों को आसानी से कर्ज मिल सके।
इस वक्त बैंकों की उधारी दर में जो गिरावट बनी हुई है, उससे साफ है कि बैंक भी एनपीए के डर से कर्ज देने में कतरा रहे हैं और कारोबारी ही नहीं, आम लोग भी घर, वाहन आदि की खरीद के लिए बैंकों से पैसा लेने में हिचक रहे हैं। सरकार को नए कारोबारियों के लिए हर तरह की सहूलियतें देनी होंगी और कानूनी झंझटों को खत्म करना होगा। तभी निवेश बढ़ पाएगा।
आर्थिक समीक्षा में वे सारे कदम उठाने का जिक्र है, जिनके जरिए भारत को अगले पांच साल में पांच लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य की ओर बढ़ना है। जाहिर है, आर्थिक सुधारों को और तेज किया जाएगा। सबसे ज्यादा यानी 1400 अरब डॉलर देश में ढांचागत सुविधाओं पर खर्च करने की बात कही गई है। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने हालांकि आश्वस्त किया है कि अर्थव्यवस्था में अब और गिरावट के आसार नहीं हैं, जितनी नरमी आनी थी आ चुकी। इसलिए अब सुधार के जो कदम उठाए जा रहे हैं उनसे अगले साल में हालात पटरी पर आने की उम्मीद बंधती है। सरकार को अब ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिनसे महंगाई पर काबू पाया जा सके, लोगों को रोजगार मिले और आमद बढ़ने के रास्ते बनें। तभी अर्थव्यवस्था जोर पकड़ पाएगी।