पिछले कई दिनों से ऐसे संकेत तो मिल ही रहे थे कि जेट एअरवेज अब बंद होने के कगार पर है। हालांकि आधिकारिक रूप से कंपनी अभी बंद नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से दो दिन पहले विमान परिचालन पूरी तरह बंद कर दिया गया, उससे स्पष्ट तस्वीर सामने आ गई। हैरानी की बात तो यह है कि आज जेट एअरवेज जिस संकट में फंस चुकी है, उसका समाधान किसी को नजर नहीं आ रहा। सरकार के पास समस्या का कोई हल नहीं है, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) कुछ कर नहीं पा रहा। प्रधानमंत्री कार्यालय तक इस मुद्दे पर बैठक बुला चुका है, लेकिन हल कुछ नहीं निकला। कंपनी प्रबंधन की लाचारी पहले ही जगजाहिर हो चुकी है। और बची-खुची उम्मीदें तब और खत्म हो गईं जब उन लोगों ने भी हाथ खींच लिए, जिन्होंने मदद की थोड़ी आस जगाई थी। पिछले हफ्ते ऐसे संकेत आए थे कि जेट एअरवेज को बचाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में बैंकों का समूह आगे आ सकता है। लेकिन बैंकों ने भी झटका दे दिया। इसके बाद ही कंपनी ने विमान परिचालन बंद कर दिया। जाहिर है, बैंकों ने हालात को भांप कर ही मदद नहीं देने का फैसला किया होगा। बैंक पहले ही विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर के मामले में हाथ जलाए बैठे हैं।

जेट एअरवेज का इस तरह भट्ठा बैठना वाकई गंभीर चिंता का विषय है। यह देश में विमानन क्षेत्र की कंपनियों को संचालित करने वाले नियामक को कठघरे में खड़ा करता है। डीजीसीए, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, कंपनी को उधार देने वाले बैंक, उसके भागीदार और सबसे बड़ा कंपनी का खुद का प्रबंधन, सब मिल कर ही ऐसी परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं। सवाल है कि अगर विमानन क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने व अच्छी सेवाएं देने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा दिए जाने की नीति है तो फिर विमानन कंपनियां घाटे में क्यों चली जाती हैं और क्यों बंद हो जाती हैं। क्या इस पर निगरानी के लिए कोई तंत्र नहीं होना चाहिए? अक्तूबर 2012 में किंगफिशर बंद हुई थी, फिर जुलाई 2016 में पेगॉसस बंद हुई, फरवरी 2017 में एअर कोस्टा बंद हो गई, इसके दो महीने बाद ही एअर कार्निवल पर ताले लग गए, पिछले साल जुलाई में जूम एअर की दुकान सिमट गई। पिछले चार साल पर नजर डालें तो हर साल एक विमानन कंपनी बंद होती गई। ये हालात बता रहे हैं कि भारत में विमानन उद्योग के लिए हालात अच्छे नहीं हैं। आखिर इसके लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाए?

साल भर पहले तक देश की नंबर-एक विमानन कंपनी का तमगा लिए जेट एअरवेज का संकट पिछले साल अगस्त में सामने आया था। संकट उजागर तब हुआ जब कंपनी अपने अस्सी फीसद से ज्यादा कर्मचारियों को उस महीने का वेतन नहीं दे पाई थी। ऐसे में जरूरत थी कि कंपनी प्रबंधन और उड्ड्यन मंत्रालय तत्काल बैठक करके कोई समाधान निकलते। तब आज जैसे हालात से बचा जा सकता था। आज कंपनी के बीस हजार से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी खतरे में है। बैंकों के आठ हजार करोड़ से ज्यादा के कर्ज के अलावा जेट को लीज पर लिए विमानों और यात्रियों को रिफंड का पैसा लौटाना है जो साढ़े तीन हजार करोड़ से ज्यादा बैठता है। ऐसे में अब जो भी जेट को खरीदेगा, उसके सामने गंभीर चुनौतियां होंगी। दस मई को पता चलेगा कि कंपनी का उद्धार करने की हिम्मत कौन जुटाता है। किंगफिशर सहित दूसरी बंद हो चुकी कंपनियां और अब जेट के हालात हमारी बीमार विमानन नीति को दुरुस्त की जरूरत रेखांकित कर रहे हैं।