देश में पिछले कुछ वर्षों से एनआरआइ यानी अनिवासी भारतीयों से शादी रचाने का चलन बढ़ रहा है। विदेश की चकाचौंध यहां के परिवारों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मगर कई बार उनके ये सपने तब डरावनी हकीकत में बदल जाते हैं, जब उन्हें धोखाधड़ी, शोषण, परित्याग, और मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की वार्षिक रपट से पता चलता है कि इस तरह की परेशानियां सबसे ज्यादा पंजाब की महिलाओं को झेलनी पड़ रही हैं, क्योंकि यहां अनिवासी भारतीयों से विवाह का आंकड़ा भी ज्यादा है। इसके बाद महाराष्ट्र, दिल्ली, और केरल सहित दूसरे राज्यों का स्थान आता है।

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यहां गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे मामलों में दो देशों के शामिल होने से कानूनी प्रक्रिया भी जटिल हो जाती है। हालांकि, सरकारी तंत्र में इस तरह की शिकायतों के निपटारे के लिए व्यवस्था मौजूद है, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका प्रभावी असर कम ही दिखाई देता है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रपट के मुताबिक, वर्ष 2024 में देशभर से ऐसे मामलों से जुड़ी चार सौ से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं। जबकि, इस वर्ष एक जनवरी से 31 मार्च तक यह आंकड़ा सौ से ज्यादा रहा। वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष पंजाब में अनिवासी भारतीयों से विवाह के विवाद को लेकर सबसे ज्यादा 49 शिकायतें मिली। इसी तरह, महाराष्ट्र से 37 और दिल्ली से 31 मामले सामने आए।

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पंजाब में इस तरह के मामले अधिक होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलू भी शामिल हैं। सरकार का दावा है कि ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया को विभिन्न हितधारकों के साथ समन्वय करके तेज किया जाता है।

विदेश में भारतीय दूतावासों और मिशनों के जरिए भी समाधान तलाशने की कोशिश की जाती है। मगर हकीकत यह है कि विदेश में भाषा, कानून और सामाजिक सहयोग के अभाव में पीड़ित महिलाओं के लिए मदद पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों में कानूनी प्रक्रिया को सरल एवं सुगम बनाया जाए, ताकि दोषियों को जल्द न्याय के कठघरे में लाया जा सके।