करीब डेढ़ महीने पहले बिहार में महागठबंधन भारी बहुमत से सत्तारूढ़ हुआ, तो इसके पीछे गठबंधन के गणित के साथ-साथ सुशासन के नीतीश कुमार के दावे पर लोगों का भरोसा जताना भी था। किसने सोचा था कि इस दावे पर इतनी जल्दी सवालिया निशान लग जाएगा! राज्य का पहला दायित्व नागरिकों के जान-माल की रक्षा का होता है। जबकि इसी कसौटी पर नीतीश कुमार के नए कार्यकाल की शुरुआत बेहद खराब हुई है। पिछले दिनों एक के बाद एक हुर्इं आपराधिक घटनाओं ने राज्य सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को अच्छा मौका मुहैया करा दिया है। भारतीय जनता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी ने ‘जंगल राज की वापसी’ की बात कह कर सरकार को तो कठघरे में खड़ा किया ही, प्रकारांतर से लालू प्रसाद यादव और राष्ट्रीय जनता दल पर तंज भी कसा है। गौरतलब है कि दरभंगा जिले में सड़क निर्माण परियोजना से जुड़े दो इंजीनियरों की छब्बीस दिसंबर को हत्या हो गई। इस घटना ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की 2003 में हुई हत्या की याद ताजा कर दी। दुबे ने राजमार्ग-निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के पीछे क्या कारण रहा होगा, यह फिलहाल जांच का विषय है। पर कंपनी की शिकायत के मुताबिक रंगदारी ही वजह थी। फिर, जल्दी ही वैशाली जिले में एक इंजीनियर के कत्ल की खबर आई। सोमवार को भागलपुर जिले के कहलगांव में एक निर्माण कंपनी के सुपरवाइजर की घर लौटते समय गोली मार कर हत्या कर दी गई। इसके अगले ही रोज फिरौती वसूलने के इरादे से इंजीनियरिंग के एक छात्र का अपहरण हो गया। ये सभी घटनाएं महज चार दिनों के भीतर हुई हैं। फिर, इनमें से शायद ही कोई घटना निजी रंजिश का नतीजा हो। इसलिए स्वाभाविक ही ये घटनाएं कहीं ज्यादा चिंताजनक हैं।
लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के राज में अपहरण और फिरौती का ग्राफ बहुत चढ़ गया था, रंगदारी ने एक संगठित ‘धंधे’ का रूप ले लिया था। क्या सत्ता में राजद के हिस्सेदार होने के कारण ही फिर वैसे तत्त्वों की बन आई है? जो हो, अभी महागठबंधन की सरकार को चंद दिन ही हुए हैं, और ऐसा कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी। पर मौजूदा हालात बहुत चिंताजनक हैं और इससे नीतीश कुमार की छवि पर छींटा पड़ा है। अगर वे सुशासन के अपने वादे पर लोगों के भरोसे को कमजोर होने देना नहीं चाहते, तो उन्हें कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर विशेष ध्यान देना होगा। अधिकारियों को बराबर यह अहसास रहे कि अपराधों पर सख्ती से काबू पाना राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यों दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद मुख्यमंत्री ने राज्य के गृह मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा की, और नए आपराधिक उभार पर आला पुलिस अफसरों को फटकार लगाई। पर सवाल यह है कि इसका असर जमीन पर क्यों नहीं दिख रहा है? रंगदारी और फिरौती के लिए अपहरण ऐसे अपराध नहीं हैं जो फौरी उत्तेजना में हो जाते हों। ऐसे अपराधों के पीछे संगठित गिरोह होते हैं और कइयों के तार राजनीति तथा प्रशासन के भ्रष्ट तत्त्वों से जुड़े रहते हैं। इसलिए हैरत की बात नहीं कि जहां राजनीति का अपराधीकरण या अपराध का राजनीतिकरण अधिक हुआ है, वहां ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। क्या नीतीश बिहार को इससे उबार सकते हैं!