पाकिस्तान को सैन्य मदद रोकने के अमेरिका के फैसले का औचित्य जाहिर है। अमेरिकी मदद रुक जाने से घबराए पाकिस्तान को कुछ सख्त कदम उठाने पड़े हैं। पाकिस्तान सरकार ने मुंबई हमलों के सरगना हाफिज सईद के संगठनों को चंदा देने पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में सबसे ज्यादा आतंकी हमले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने किए हैं। हाफिज लश्कर का संस्थापक तो है ही, वह जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन जैसे धर्मादा संगठन भी चलाता है, और इन संगठनों के सहारे उसने पूरे पाकिस्तान में पैर पसार रखे हैं। इसलिए दूसरे आतंकी सरगनाओं की तुलना में हाफिज के खिलाफ कार्रवाई करना पाकिस्तान सरकार के लिए ज्यादा मुश्किल काम रहा है। अगर अमेरिका का दबाव न होता, तो पाकिस्तान की ताजा कार्रवाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नए साल की शुरुआत पर किए अपने एक ट्वीट में ट्रंप ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान ने अमेरिका को झूठ और फरेब के सिवा कुछ नहीं दिया, और उसने पिछले पंद्रह बरसों में तैंतीस अरब डॉलर की मदद लेने के बावजूद, आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराया है। ट्रंप के यह कहने के कोई हफ्ते भर बाद अमेरिका ने सुरक्षा सहायता के तौर पर 1.15 अरब डॉलर से अधिक की रकम और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति रोक दी।
आतंकी संगठनों की सक्रियता की अनदेखी करने के पाकिस्तान के रवैए पर अमेरिका चेतावनी देता रहता था, पर अब उसे लगा कि केवल चेतावनी देते रहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यहां यह भी गौरतलब है कि अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क और अफगान-तालिबान पर नकेल न कसने का दोष तो पाकिस्तान पर मढ़ा ही है, उन आतंकी संगठनों पर शिकंजा न कसने के लिए भी पाकिस्तान को धिक्कारा है जो खासकर भारत को निशाना बनाते रहे हैं। लिहाजा, ट्रंप प्रशासन की ताजा कार्रवाई भारत के लिए महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि भी है। पर क्या अमेरिका पाकिस्तान के प्रति अपनी सख्ती पर कायम रहेगा? यह सवाल दो कारणों से उठता है। एक तो इसलिए कि पाकिस्तान को अमेरिका से मिलती आ रही सुरक्षा सहायता कोई खैरात नहीं है; यह कथित सहायता काफी हद तक खुद अमेरिका से हथियार खरीदने के काम आती रही है। दूसरे, अफगानिस्तान में अपने सामरिक हितों के लिए पाकिस्तान को खुश रखना अमेरिका के लिए जरूरी रहा है।
अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिकों के लिए सारी आपूर्ति पाकिस्तान होकर ही होती है। अगर पाकिस्तान यह रास्ता बंद कर दे, जैसा कि 2011 में उसने कुछ समय के लिए किया था, तो अमेरिका को वैकल्पिक मार्ग ढूंढ़ना होगा। रूस और मध्य एशिया होकर अफगानिस्तान तक आपूर्ति का रास्ता चुनना बहुत खर्चीला साबित होगा। फिलहाल, पाकिस्तान ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वह अमेरिका के लिए अफगानिस्तान तक पहुंचने का रास्ता बंद कर सकता है। अभी तो हाफिज सईद के संगठनों को चंदा देने पर दस साल की सजा का प्रावधान करके पाकिस्तान यही जताने की कोशिश कर रहा है कि वह अमेरिका की नाराजगी को नजरअंदाज नहीं करना चाहता। शायद पाकिस्तान को इस बात की भी फिक्र होगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक टीम इस महीने के आखीर में वहां आने वाली है, यह जायजा लेने के लिए कि आतंकवाद के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव में ही सही, अगर पाकिस्तान आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए विवश होता है, तो यह भारत के लिए बड़ी राहत और संतोष की बात होगी।