कई बार कुछ राजनेता अति उत्साह या फिर वाणी और विचार में तालमेल न बिठा पाने की वजह से बेवजह मुसीबत मोल ले बैठते और फिर चौतरफा निंदा के पात्र बनते हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी इन दिनों कुछ ऐसी ही मुसीबत मोल ले बैठे हैं। उन्होंने कहा कि भगवान राम नेपाल के बीरगंज में पैदा हुए थे। उनका जन्म भारत में हुआ ही नहीं। स्वाभाविक ही इस पर भारत का संत समाज नाराज हो उठा है। यहां तक कि नेपाल के विपक्षी दलों और दूसरे कई राजनेता को भी इस बहाने ओली की भर्त्सना का मौका मिल गया है।

अभी ओली चीन के साथ खड़े होकर सीमा विवाद में कालापानी इलाके पर अपना दावा ठोंकने को लेकर विवादों से बाहर निकले भी न थे कि भगवान राम पर दावा ठोंक कर एक नई झंझट में पड़ गए हैं। चीन के साथ दोस्ती और भारत से दूरी बढ़ाने को लेकर ओली से उनकी पार्टी के लोग भी खफा हैं और उन्हें उनके पद से हटाने तक पर विचार हो रहा है। ऐसे में भारत के प्रति कटुतापूर्ण बयान उनकी मुश्किलें और बढ़ा सकता है। भगवान राम को लेकर जो तथ्य सर्वस्वीकृत हैं, उन्हें तोड़ने-मरोड़ने का यह प्रयास बेतुका ही कहा जा सकता है।

हालांकि मिथकीय और पौराणिक आख्यानों की समय और समाज की स्थितियों के अनुसार पुनर्व्याख्याएं होती रहती हैं, पर उनमें भी बिल्कुल असंगति नहीं होती। भगवान राम को लेकर अनेक व्याख्याएं हैं। दुनिया भर में जो भी रामकथाएं लिखी गई हैं, उनमें राम और सीता का स्वरूप एक जैसा नहीं है। थोड़ी-बहुत भिन्नताएं हर जगह हैं। फिर लोक में जो कथाएं व्याप्त हैं, उनमें बहुत सारा भेद देखा जा सकता है। पर जन्म, विवाह, वनगमन, युद्ध आदि को लेकर सबमें संगति मिलेगी। फिर पौराणिक कथाएं अब सिर्फ कपोल कल्पित नहीं मानी जातीं, उनके आधार पर इतिहास संबंधी तथ्यों को भी जोड़ कर देखने का प्रयास होता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास और सभ्यता, संस्कृति के अध्ययन में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों से बहुत मदद मिलती है। उनके तथ्य ऐतिहासिक तथ्यों से जोड़ कर व्याख्यायित किए जाते हैं। अब अनेक अध्ययनों से उन तथ्यों की प्रामाणिकता भी सिद्ध है। रामजन्मभूमि को लेकर विवाद बहुत रहा पुराना है और उसे साबित करने के लिए व्यापक अध्ययन हो चुके हैं। अदालतों ने उन अध्ययनों और प्रमाणों के आधार पर ही अयोध्या में रामजन्मभूमि स्थल को सही माना है। इतना कुछ के बावजूद अगर ओली राम का जन्म बीरगंज के ठोरी में मानते हैं, तो यह उनकी नासमझी ही कही जाएगी।

संभव है कि नेपाल की किसी लोककथा में कहीं ऐसा प्रसंग हो, जिसमें राम का जन्म बीरगंज में बताया गया हो। जैसे सीता की रसोई को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में दावे हैं। शायद बचपन में सुनी वह कथा ओली के मन में अब भी बसी हो। पर इस आधार पर उनके बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब वे एक जिम्मेदार पद का निर्वाह करते हैं और उनसे इस बात की उम्मीद नहीं की जाती कि भगवान राम से संबंधित तथ्यों को लेकर वे लोक की भ्रांत धारणाओं को उचित ठहराएं।

इसे पीछे एक वजह उनके मन में भारत के प्रति कटुता भी हो सकती है। पर इस तरह कटुता प्रकट करना एक प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। भगवान राम की जन्मस्थली का विवाद कालापानी की तरह नहीं है कि वे उस पर दावा ठोक कर चीन या किसी और देश की नजर में ऊपर उठ सकते हैं।