अभी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बीस फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी की और कहा कि इन विश्वविद्यालयों की डिग्रियां कहीं भी मान्य नहीं होंगी। इसके पहले भी कई बार गैर-कानूनी तरीके से चलाए जा रहे विश्वविद्यालयों की पहचान कर उन्हें फर्जी घोषित किया जा चुका है। एक समय था, जब छत्तीसगढ़ में विश्वविद्यालयों की बाढ़-सी आ गई थी।

तब सौ से ऊपर विश्वविद्यालयों को फर्जी करार दिया गया था। उसके अलावा भी कई मौकों पर विश्वविद्यालय और मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय यानी डीम्ड यूनीवर्सिटी की तख्ती टांग कर डिग्रियां बांटने वाले संस्थानों पर नकेल कसने की कोशिश की गई है। इस बार जिन बीस विश्वविद्यालयों को फर्जी बताया गया है, उनमें से सबसे अधिक आठ दिल्ली में चल रहे हैं।

इसी तरह उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल में भी फर्जी विश्वविद्यालयों की पहचान की गई है। अब यूजीसी के फैसले के बाद इन विश्वविद्यालयों की डिग्रियों का कोई मोल नहीं रह गया है। न तो उनके आधार पर विद्यार्थी कहीं और दाखिला ले सकते हैं और न किसी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस तरह न जाने कितने युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उनके धन और समय की बर्बादी हुई, सो अलग।

दरअसल, फर्जी विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों का उदय इसलिए होता है कि हमारे देश में आबादी के अनुपात में सरकारी विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों की बहुत कमी है। फिर निजी पूंजी से चल रहे विश्वविद्यालयों और संस्थानों में फीस इतनी अधिक होती है कि उसे वहन कर पाना सामान्य आयवर्ग के बूते की बात नहीं होती।

ऐसे में हर साल लाखों विद्यार्थियों के सामने संकट पैदा हो जाता है कि किसी विश्वविद्यालय या संस्थान में दाखिला न मिल पाने के कारण उनका साल बर्बाद चला जाएगा। हालांकि विश्वविद्यालयों ने पत्राचार के माध्यम से पढ़ाई की सुविधा भी उपलब्ध करा रखी है, देश में कई जगह मुक्त विश्वविद्यालय भी खुल गए हैं, मगर बहुत सारे विद्यार्थियों को लगता है कि संस्थानों में नियमित पढ़ाई ही सबसे बेहतर व्यवस्था है।

मुक्त विश्वविद्यालयों और पत्राचार से हासिल डिग्री को नौकरियों में उतनी तरजीह नहीं दी जाती। फिर आजकल आम धारणा बन चुकी है कि जिनके पास तकनीकी शिक्षा की डिग्री नहीं, उनके सामने रोजगार का संकट रहेगा। ऐसे में परिवार वाले भी चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी न किसी विश्वविद्यालय या संस्थान से तकनीकी शिक्षा की डिग्री हासिल करे। अभिभावकों और विद्यार्थियों की इन्हीं चिंताओं का लाभ ये फर्जी विश्वविद्यालय उठाते हैं।

विश्वविद्यालय खोलने के लिए कुछ नियम-कायदे तय हैं। सरकारी विश्वविद्यालय खोलने के लिए संसद या विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराना पड़ता है। निजी विश्वविद्यालयों को परिसर, कक्षाओं, सभागारों, प्रयोगशालाओं आदि का नक्शा पास कराना पड़ता है। उनके लिए आकार आदि तय हैं। फिर पाठ्यक्रमों को मान्यता प्रदान की जाती है, उसके लिए भी अध्यापकों आदि की योग्यता देखी जाती है।

मगर इतनी तकनीकी बारीकियां सामान्य लोगों को नहीं पता होतीं। इसलिए आमतौर पर फर्जी विश्वविद्यालय निम्न आयवर्ग के और कम पढ़े-लिखे परिवारों के बच्चों को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चे भी उनके झांसे में आ जाते हैं, जिन्हें कहीं और दाखिला नहीं मिल पाता।

मगर सवाल है कि ऐसे विश्वविद्यालय अपना फर्जीवाड़ा बरसों बरस कैसे चलाते रहते हैं और प्रशासन की उन पर नजर नहीं जा पाती। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जब तक उन पर नकेल कसता है, तब तक वे बहुत सारे युवाओं का भविष्य अंधकारमय बना चुके होते हैं।