सरकार के आश्वासन के बाद देश भर में ट्रक चालकों की हड़ताल के बाद उपजी मुश्किल शायद फिलहाल खत्म हो जाए, मगर इससे एक बार फिर यह साफ हुआ है कि व्यापक असर वाले किसी कानून को लागू करने से पहले उससे प्रभावित पक्षों के साथ राय-मशविरा करना एक जरूरी पहलू होना चाहिए। गौरतलब है कि ‘हिट एंड रन’ यानी हादसे के बाद वाहन चालक के भाग जाने के मामलों में नए कानून के तहत सख्त प्रावधानों के खिलाफ ट्रक, टैक्सी और बस संचालकों के संगठनों ने देश भर में हड़ताल शुरू कर दी थी।

इसके बाद न केवल सामान्य आवाजाही पर बुरी तरह असर पड़ा, बल्कि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी बाधित होनी शुरू हो गई, दो हजार से ज्यादा पेट्रोल पंप ठप पड़ गए। जाहिर है, इसका सीधा असर जनजीवन पर पड़ना शुरू हो गया और आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं की कमी हुई और उनकी कीमतें चढ़नी शुरू हो गई। यह स्थिति शायद जल्दबाजी में लिए एक ऐसे निर्णय की वजह से पैदा हुई, जिसका असर व्यवहार में कुछ कसौटियों पर सवालों के घेरे में माना जा रहा है।

दरअसल, ‘हिट एंड रन’ के मामले में अब तक भारतीय दंड संहिता में कोई विशेष प्रावधान नहीं था और जानलेवा हादसों के बाद लापरवाही के कारण मौत की धाराओं के तहत ही कार्रवाई होती थी, जिसमें दो वर्ष तक की जेल की सजा तय की गई थी। ज्यादातर मामलों में चालक को जमानत भी मिल जाती थी। मगर नए कानून के मुताबिक, कोई भी चालक अगर तेज और लापरवाही से वाहन चला कर किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनता है और मौके से भाग जाता है तो उसके लिए उसे दस वर्ष की जेल होगी और सात लाख रुपए जुर्माना देना होगा।

देश में व्यावसायिक वाहनों और खासतौर पर ट्रक चालकों के रोजगार, पारिश्रमिक और काम की जो स्थितियां रही हैं, उसमें उनके बीच यह खौफ फैला कि नया कानून लागू होने के बाद उनके लिए सड़क पर सहज होकर चलना मुश्किल हो जाएगा। उनका मानना यह है कि कई बार हादसों में उनकी गलती नहीं होती है, लेकिन नया कानून लागू हुआ तो दुर्घटना के बाद आम लोगों की उग्र प्रतिक्रिया से लेकर कानूनी प्रावधान तक उनके जीवन के लिए बड़ा आघात साबित होगा। इसी आशंका की वजह से व्यावसायिक वाहन चालकों के बीच व्यापक विरोध पैदा हुआ।

हालांकि नए कानून में इस प्रावधान को लाने के पीछे सरकार ने अपनी यही मंशा जाहिर की कि अब तक हादसों के बाद भाग जाने की प्रवृत्ति रही है और इस क्रम में कई दोषी या तो बच जाते थे या पकड़े जाने पर उन्हें मामूली सजा मिलती थी। सड़कों पर बेलगाम वाहन चलाने और उसकी वजह से होने वाले हादसों पर काबू पाने के लिहाज से इसे एक सख्त पहल कहा जा सकता है।

मगर इसका एक पहलू यह भी है कि देश में सड़कों से लेकर यातायात की स्थिति और नियम-कायदों का पालन करने के प्रति गंभीरता की जो तस्वीर रही है, वह हादसों की जिम्मेदारी को जटिल बना देती है। इसलिए इससे संबंधित कानूनी प्रावधानों से प्रभावित लोगों के बीच सवाल उठना लाजिमी है। व्यापक दायरे और प्रभावित वर्गों के साथ विचार-विमर्श के बिना किसी कानून को लागू करने और उस पर रोक की असुविधाजनक स्थिति इससे पहले कृषि कानूनों को वापस लेने के समय भी देखी गई थी। ट्रकों की हड़ताल से उपजे हालात के बाद सरकार ने कानून को लागू करने से पहले संबंधित पक्षों से राय-मशविरा करने का आश्वासन दिया, लेकिन अगर यह काम पहले कर लिया गया होता तो शायद देश भर में अफरातफरी पैदा नहीं होती।