केंद्रीय गृह सचिव के पद पर अचानक हुए बदलाव ने बहुतों को चकित किया है, साथ ही इससे सरकार की निर्णय-प्रक्रिया और काम करने के तरीके को लेकर भी सवाल उठे हैं। आमतौर पर सचिवों का कम से कम दो साल का निश्चित कार्यकाल रहता है। लेकिन पंद्रह महीनों में ही केंद्रीय गृह सचिव के पद पर तीसरी नियुक्ति हुई है। एलसी गोयल को इस पद से हटा दिया गया, जबकि उन्हें यह जिम्मेदारी संभाले केवल सात महीने हुए थे।

वैसा ही अचरज का विषय उनके उत्तराधिकारी का चयन है। दो दिन पहले तक वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव का काम देख रहे राजीव महर्षि को नया गृह सचिव बनाने की घोषणा की गई, जबकि उनकी सेवानिवृत्ति के समारोह की तैयारी चल रही थी। सरकार का गठन करने के कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा था कि वे अफसरों का मनोबल बनाए रखें। लेकिन सर्वोच्च प्रशासनिक स्तर पर हुए ताजा फेरबदल से क्या वैसा ही संदेश गया है?

सरकार को अपने सचिवों को स्थानांतरित करने का पूरा हक है। लेकिन जब तक कोई विशेष बात न हो, नियत कार्यकाल के बीच में उनका पद या विभाग बदलना असामान्य कदम ही माना जाएगा। गोयल को गृह सचिव पद से क्यों हटा दिया गया यह फिलहाल साफ नहीं है। अभी इस बारे में अटकलें जरूर लगाई जा रही हैं।

एक यह कि प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय गोयल से नाराज थे, भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वार्ता से पहले दाऊद और उससे जुड़ा डोजियर लीक हो गया, जिससे पाकिस्तान को घेरने की रणनीति नाकाम हो गई। दूसरे, गोयल ने सन टीवी को सुरक्षा संबंधी मंजूरी देने का विरोध किया था, जबकि महाधिवक्ता की राय उलट थी; इस मामले में सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ी। गोयल को हटाए जाने की तीसरी वजह उनकी यह टिप्पणी बताई जाती है कि नगा समझौते के बारे में गृह मंत्रालय को कुछ पता नहीं था। एक-दो और कारण भी हो सकते हैं।

वास्तव में ये सभी कारण रहे हों या इनमें से कोई एक, सवाल यह है कि जब गोयल ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की ओर से जारी आदेश में भी इसका जिक्र था, तो फिर उन्हें रातोंरात भारत व्यापार संवर्धन संगठन का अध्यक्ष क्यों बना दिया गया? क्या इस डर से कि कहीं वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय के बीच खटास का संकेत न जाए? उसी आदेश में नए गृह सचिव के तौर पर राजीव महर्षि की नियुक्ति की भी घोषणा की गई, जिन्हें एक दिन बाद अवकाश ग्रहण करना था?

उनके बजाय दूसरे नामों पर विचार क्यों नहीं किया गया? क्या इसलिए कि वे प्रधानमंत्री की पसंद थे? इससे पहले, जनवरी में विदेश सचिव पद से सुजाता सिंह को अचानक हटाया गया था, जबकि उनका सेवा-काल छह महीने बाकी था। अपने अवकाश ग्रहण से महज दो दिन पहले नए विदेश सचिव की नियुक्ति की गई। वित्त सचिव के पद से अरविंद मायाराम की भी इसी तरह एकाएक विदाई हुई थी। इस तरह के निर्णयों से अनिश्चितता का माहौल बनता है। सर्वोच्च प्रशासनिक स्तर पर होने वाली नियुक्तियां, तबादले और सेवा-विस्तार न सिर्फ सुसंगत हों बल्कि वैसे दिखें भी।

 

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