स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दूसरा मौका था। पिछली बार उनका संदेश कहीं अधिक उम्मीद भरा था। शायद इसका एक खास कारण यह रहा हो कि तब उन्हें नए-नए मिले जनादेश का माहौल था।

नए प्रधानमंत्री के संबोधन में नवीनता भी थी; ढर्रे से हट कर उन्होंने स्त्री के प्रति हिंसा और गंदगी जैसी सामाजिक बुराइयों से लड़ने का आह्वान किया। मगर इस बार जब मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया, तब उन्हें प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाले करीब पंद्रह महीने हो चुके थे। इसलिए उनके भाषण का एक खासा हिस्सा ऐसा था जिसमें सरकार के बचाव की कोशिश नजर आई। उनके समर्थकों को इससे तसल्ली हुई होगी। पर आलोचकों और विरोधियों को भी मुखर होने का मौका मिला है।

प्रधानमंत्री ने पिछली बार कहा था कि अगर देश को तेजी से विकास करना है तो लोग कम से कम दस साल के लिए जाति और धर्म के झगड़े भुला दें। इस बार भी भारत की एकता और विविधता रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जातिवाद और सांप्रदायिक उन्माद के लिए देश में कोई जगह नहीं है। सवाल है कि यह अवसरोचित शब्द-लीला है, या उनकी सरकार और पार्टी ने इसे एक नीति के तौर पर भी अपनाया हुआ है?

पिछले स्वाधीनता दिवस के मोदी के आह्वान से उलट कई जगह गिरजाघरों पर हमले हुए, ‘घर वापसी’ का तनाव-भरा अभियान चला और सौहार्द बिगाड़ने वाले बयान देने वालों में केंद्र के एक-दो मंत्री भी शामिल रहे। क्या यह विरोधाभास आगे नजर नहीं आएगा? पिछले स्वाधीनता दिवस पर मोदी ने जो कार्यक्रम घोषित किए थे, एक साल पूरा होने पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उस दिशा में क्या प्रगति हुई।

प्रधानमंत्री ने अपने आश्वासन के बावजूद पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन के बारे में कोई घोषणा नहीं की। स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्कूलों में एक साल में जितने शौचालय बने, शायद ही पहले कभी बने होंगे। मगर आंकड़े और हकीकत के बीच थोड़ा फासला भी है। कई जगह ये पानी की सुविधा से रहित हैं, तो कई जगह इनकी रोजाना सफाई नहीं होती। प्रधानमंत्री ने बताया कि जन धन योजना के तहत सत्रह करोड़ खाते खोले गए हैं।

महज एक साल में इतने लोगों को बैंक-खाते की सुविधा मुहैया कराना बड़ी बात है। पर तथ्य यह भी है कि इनमें से लगभग छियालीस फीसद खाते शून्य बैलेंस वाले हैं। विडंबना यह है कि इसे ‘गरीबों की अमीरी’ कहने में मोदी को तनिक संकोच नहीं हुआ। क्या महज खाता खुल जाना अमीरी है? देश से गरीबी मिटाने का इससे आसान तरीका और क्या हो सकता है! निश्चय ही आर्थिक मोर्चे पर सरकार की कुछ उपलब्धियां हैं।

लालफीताशाही कम हुई है, महंगाई काबू में है। मगर पिछला एक साल किसानों की खुदकुशी की घटनाओं में आई तेजी के लिए भी जाना जाएगा। किसानों को उनकी उपज की लागत से डेढ़ गुना दाम दिलाने के मोदी के वादे का क्या हुआ? प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार की प्रमुखता से चर्चा की। पर अब ललित मोदी प्रकरण, विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे से लेकर व्यापमं तक, अनेक कांड उनका पीछा कर रहे हैं। लोकपाल संस्था का गठन अधर में क्यों है? दरअसल, अब मोदी की समस्या यह है कि वे जो कुछ कहेंगे, उसकी कसौटी पर लोग सबसे पहले उनकी सरकार को कसेंगे।

 

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