झारखंड के दुमका में एक विदेशी महिला से बलात्कार और मारपीट की घटना न सिर्फ अपराधियों के बेलगाम होते जाने, बल्कि कानून-व्यवस्था खोखला होने का सबूत है। इसमें आरोपियों ने जिस तरह पीड़ित महिला के खिलाफ यौन हिंसा की, उससे यही लगता है कि उस इलाके में पुलिस प्रशासन का कोई खौफ नहीं था। हालांकि जब मामला पुलिस के पास पहुंचा तो वह सतर्क हो गई और अब तक चार आरोपियों को गिरफ्तार किए जाने की बात कही जा रही है।

मगर विडंबना है कि जब ऐसी कोई आपराधिक घटना हो जाती और जनआक्रोश उभरता तथा मामला तूल पकड़ लेता है, तभी सरकार और प्रशासन की नींद क्यों खुलती है। यही सक्रियता अगर सामान्य स्थितियों में भी कायम रहे, तो शायद किसी आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के भीतर कानूनी कार्रवाई का डर बन सकता है और इस तरह कई अपराधों को पहले ही रोका जा सकता है।

अफसोसनाक यह है कि भारत की ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा का गुणगान करते हुए दुनिया भर के लोगों से यहां आने का आग्रह किया जाता है। मगर विदेश से भारत घूमने आए पर्यटकों के साथ कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिन्हें उदाहरण मान कर खासतौर पर महिलाओं के लिहाज से यहां असुरक्षित और खतरनाक माहौल होने की बात कही जाती है। स्पेन की महिला के साथ जो हुआ, उससे एक बार फिर उसी धारणा की पुष्टि हुई है। सवाल है कि परदेस में भारत की ऐसी छवि न बने, इसके लिए यहां की सरकारें, पुलिस प्रशासन और आम लोग अपने स्तर से क्या करते हैं!

आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से किसी विदेशी के भारत में आने और उसके साथ किए जाने वाले व्यवहार की अहमियत समझने की उम्मीद बेमानी है। यों किसी भी महिला के खिलाफ यौन हिंसा को लेकर शून्य सहनशीलता की नीति अपनाने और उसे गंभीर अपराधों की श्रेणी में दर्ज किया जाना अनिवार्य होना चाहिए, मगर भारत में जिस ‘अतिथि देवो भव’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का हवाला दिया जाता रहा है, उसे सचमुच जमीन पर उतारना या सुनिश्चित करना सरकार और प्रशासन का ही दायित्व है।