यह समझना मुश्किल है कि हमारे देश में क्या इतने कम पढ़े-लिखे और नासमझ लोग हैं कि उन्हें महिलाओं के लिए आरक्षित रेल के डिब्बों और कूपों की पहचान करने में मुश्किल होती है और वे उसमें सफर करने लगते हैं। ऐसा भी नहीं माना जा सकता कि ऐसे डिब्बों में सफर करते हुए उन्हें कोई टोकता न होगा। फिर भी अगर लोग महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बों या कूपों में सफर करने की ढिठाई करते हैं, तो जाहिर है उनकी प्रवृत्ति आपराधिक ही हो सकती है।
पिछले पांच वर्षों में तीन लाख से अधिक पुरुषों को गिरफ्तार किया गया
सूचनाधिकार कानून के तहत मांगी गई एक जानकारी से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में महिला डिब्बों और कूपों में सफर करते हुए तीन लाख के अधिक पुरुषों को गिरफ्तार किया गया। सबसे अधिक पश्चिम रेलवे में ऐसे लोग पकड़े गए। इससे यही जाहिर होता है यह प्रवृत्ति आम है। कुछ मामलों में तो माना जा सकता है कि कम पढ़े-लिखे लोग महिला डिब्बे की पहचान न कर पाने की वजह से, गलती से उनमें चढ़ गए होंगे और जब उन्हें इसका बोध कराया गया होगा, तो गाड़ी के चल देने की वजह से उतर नहीं पाए और पकड़े गए होंगे। मगर औसतन वर्ष भर में साठ हजार लोग ऐसे नहीं हो सकते।
दरअसल, रेलवे को ‘अपनी संपत्ति’ समझने वाले ‘दबंगों’ की कमी नहीं है। ऐसे लोग तो टिकट तक लेना जरूरी नहीं समझते और किसी भी डिब्बे में सवार होकर सफर पर निकल पड़ते हैं। इनमें बहुत सारे ऐसे मुसाफिर होते हैं, जो नौकरी या कारोबार के सिलसिले में एक शहर से दूसरे शहर तक रोज आवाजाही करते हैं। उनके लिए पूरी रेल ही खुली जगह है और उसमें कहीं भी कब्जा जमा लेना वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं।
टिकट लेकर सफर करने वाले मुसाफिरों को अक्सर ऐसे लोगों की बत्तमीजियों का सामना करना पड़ता है। फिर, भला ऐसे लोगों से महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बों या कूपों में सफर न करने की सलाहियत की कितनी उम्मीद की जा सकती है। अच्छी बात है कि रेलवे आरक्षी बल ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाता है, मगर इतने भर से रेलों में महिला सुरक्षा का भरोसा पैदा नहीं होता।