मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही। अभी जिरीबाम जिले के एक आदिवासी बहुल गांव में घुस कर सशस्त्र उग्रवादियों ने छह घरों में आग लगा दी। उसमें एक महिला मारी गई। मृतक महिला के पति ने प्राथमिकी दर्ज कराई है कि कमरे में बंद कर महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, फिर उसे आग के हवाले कर दिया गया। हालांकि मणिपुर पुलिस इस मामले पर पर्दा डालने का प्रयास करती देखी गई। मणिपुर हिंसा को भड़के डेढ़ वर्ष से अधिक समय हो गया। सरकार इस पर काबू पाने का आश्वासन भर देती रही है।
हकीकत यह है कि वहां गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। मैतेई और कुकी समुदाय के लोग घात लगा कर एक-दूसरे पर हमला करते रहते हैं। अब तो इस हिंसा में राकेट और ड्रोन जैसे अत्याधुनिक हथियारों का भी सहारा लिया जाता देखा जाने लगा है। कई घटनाओं से जाहिर हो चुका है कि उग्रवादी पहले किसी इलाके को चिह्नित करते हैं, फिर वहां सिलसिलेवार ढंग से हमले करते हैं। इस समय जिरीबाम जिले में हमले अधिक देखे जा रहे हैं।
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हालांकि हिंसा भड़कने के बाद शुरू में केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया था, मगर वह केवल दिखावटी साबित हुआ। उसके बाद भी कई बार उग्रवादियों ने पुलिस के शस्त्रागार से हथियार और गोला-बारूद लूट लिए। बार-बार दावे किए जाते रहे कि इस हिंसा पर काबू पा लिया जाएगा, मगर इसके लिए कोई व्यावहारिक कदम उठाया जाता नजर नहीं आया।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वत: लिया था संज्ञान
सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए निगरानी और जांच समितियां गठित कर दी थीं। उसमें बाहरी राज्यों के पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया। मणिपुर पुलिस को बाध्य किया गया कि वह हर जांच में सहयोग करेगी। तब उम्मीद बनी थी कि मणिपुर हिंसा की हकीकत जल्दी ही सामने आएगी और हिंसा रोकने में मदद मिलेगी। मगर उसका भी कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकला।
मणिपुर कोई इतना बड़ा और जटिल राज्य नहीं है कि वहां की स्थितियों से निपटना मुश्किल हो। विवाद भी एक भ्रम की वजह से पैदा हुआ था, जिसमें वहां के उच्च न्यायालय ने मैतेई समुदाय को जनजाति श्रेणी में रखने का सुझाव दिया था। अगर सरकार सचमुच संजीदा होती, तो वह अब तक दोनों समुदाय के लोगों को आमने-सामने बिठा कर मसले का हल निकाल चुकी होती। मगर उसके रवैये से तो यही लगता है कि वह इसे सुलझाना ही नहीं चाहती!
उग्रवादी संगठन लगातार होते गए ताकतवर
मणिपुर सरकार और केंद्र की ढिलाई का ही नतीजा है कि वहां उग्रवादी संगठन लगातार ताकतवर होते गए हैं और हिंसा-प्रतिहिंसा की घटनाओं पर काबू पाना कठिन जान पड़ता है। केंद्र में विपक्षी दल लगातार मांग करते रहे कि अगर मणिपुर की स्थिति से निपटने में वहां के मुख्यमंत्री नाकाम साबित हो रहे हैं, तो उन्हें बदल देने में गुरेज क्यों होनी चाहिए। मगर केंद्र सरकार उस मांग को अनसुना करती रही।
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कोई भी कल्याणकारी सरकार देश के किसी भी हिस्से में इस तरह पैदा हो गई गृहयुद्ध जैसी स्थिति को हाथ पर हाथ धरे कैसे देख सकती है। इस मामले में राज्य सरकार की शिथिलता और केंद्रीय शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी स्वाभाविक ही लोगों को हैरान करती है। अब तक मणिपुर में करीब ढाई सौ लोग मारे जा चुके हैं, साठ हजार के आसपास लोग अपने घरों से विस्थापित हैं, कई महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हो चुके हैं। अब कब सरकारों की संवेदनशीलता नजर आएगी?