यह सही है कि विश्व स्तर पर होने वाली राजनीतिक उथल-पुथल, युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं का असर समूची दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और यह कोई अचानक पैदा हुई स्थिति नहीं है। लेकिन पिछले कुछ साल इस लिहाज से ज्यादा संवेदनशील रहे हैं कि कई स्तर पर पैदा हुई अस्थिरता ने अमूमन सभी देशों की आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक असर डाला और स्वाभाविक ही वैश्विक स्तर पर होने वाले आकलनों में इसे लेकर चिंता उभरी।

इसी सिलसिले में विश्व बैंक ने जिस तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में गिरावट आने की आशंका जताई है, अगर वह उसी अनुपात में सचमुच हुआ, तो पहले से ही बहुस्तरीय संकटों का सामना करने वाले देशों के लिए कई चुनौतियां खड़ी होंगी। इसे लेकर जिस तरह के आकलन सामने आए हैं, उसमें खुद धनी और विकसित देश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।

लेकिन बुनियादी ढांचे में वैकल्पिक व्यवस्थाओं के बूते कुछ देश तात्कालिक तौर पर तो इसका सामना कर भी ले सकते हैं, लेकिन उनके लिए भी शायद बड़े झटकों को सहना मुश्किल ही होगा। असली संकट वैसे देशों के सामने आ सकता है, जो पहले ही कई स्तर पर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इसके बरक्स कुछ गरीब या विकासशील देश तो अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए भी ताकतवर और धनी देशों पर निर्भर हैं।

दरअसल, पिछले तीन-चार सालों के दौरान देशों को बुरी तरह प्रभावित करने वाले जैसे हालात पैदा हुए, उसका असर स्वाभाविक ही था। पहले महामारी के असर से उपजी त्रासदी और उसका दीर्घकालिक प्रभाव। इसके बाद पूर्णबंदी और उसकी वजह से दुनिया भर में अर्थतंत्र का एक तरह से ढह जाना। फिर जब कोरोना का जोर थमा और तमाम देश इससे उबरने की कोशिश में थे कि इसी बीच रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरू हो गया।

जाहिर है, इस सबके बीच आर्थिक गतिविधियां जिस प्रतिकूल हालात का सामना कर रही हैं, उसका मिलाजुला असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ना ही है। फिर अभाव से जूझते देशों और उनके नागरिकों की निजी आर्थिक मुश्किलें भी बढ़ती रहीं, मगर इसके समांतर परिस्थितियों का हवाला देकर बैंकों की ओर से ब्याज दरें भी ऊंची रखी गईं।

विश्व बैंक दरअसल दुनिया के एक सौ नवासी देशों में गरीबी उन्मूलन की नीतियों पर काम कर रहा है। उसने अपने ताजा आकलन में कहा है कि वर्ष 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2.1 फीसद रहेगी, जबकि पिछले साल यह 3.1 फीसद रही थी। यानी महामारी और पूर्णबंदी के उथल-पुथल के दौर में भी विश्व की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर मौजूदा दौर से बेहतर स्थिति में थी।

यह छिपा नहीं है कि कोरोना महामारी की घोषणा के बाद दुनिया के लगभग सभी देशों में उसके संक्रमण से बचाव के लिए जिस तरह की पाबंदियां लगाई गईं, उसका सीधा असर वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर पड़ा। उस दौरान लगे झटकों से बहुत सारे वैसे क्षेत्र अब भी नहीं उबर पाए हैं, जो किसी देश की आर्थिक रीढ़ हुआ करते थे।

इसके बाद अमूमन सभी देशों को महामारी के दौर में अपने लाचार नागरिकों को भूख से बचाने की भी चुनौती खड़ी हो गई थी। कोरोना का जोर कम होने के बाद सभी देश हालात से निपटने की कोशिश में ही थे कि रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए युद्ध ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक मोर्चे पर गहरा नकारात्मक असर डाला। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सबका असर वैश्विक स्तर पर सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कैसा पड़ा होगा। इस लिहाज से देखें तो वृद्धि दर में गिरावट का आकलन बस नतीजों का आईना है, जिसमें सभी देशों को विपरीत हालात का सामना करना पड़ा।