यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि जिस सरकार पर बेघर और लाचार लोगों की मदद करने और उन्हें संभलने के लिए संसाधन मुहैया कराने की जिम्मेदारी है, उसके महकमे यह सुनिश्चित करने के बजाय अमानवीयता को पीछे छोड़ रहे हैं। खबर के मुताबिक कुछ दिन पहले इंदौर में नगर निगम के कर्मचारी सड़क किनारे फुटपाथों पर किसी तरह गुजर-बसर करने वाले बुजुर्गों को एक डंपर में मवेशियों की तरह लाद कर इंदौर-देवास सीमा पर शिप्रा नदी के पास छोड़ कर जा रहे थे।

जिन बुजुर्गों को वहां लाचार छोड़ दिया गया था, उनमें से कई ठीक से चल पाने की तो दूर, खड़े तक नहीं हो पा रहे थे। इस पर वहां के कुछ लोगों की नजर पड़ी तो उन्होंने घटना का वीडियो बना लिया और निगम कर्मचारियों की अमानवीय हरकत का विरोध किया। हंगामा बढ़ता देख कर उन बुजुर्गों को वापस डंपर में बिठा कर ले जाया गया।

देश में बुजुर्गों की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा कानून बनाए गए हैं। परिवार में भी अगर संतानें अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करती है तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। बेघर, बेसहारा और लाचार बुजुर्गों के संरक्षण के लिए रैन बसेरा सहित दूसरे कल्याण कार्यक्रमों की एक फेहरिस्त है, जिस पर अमल सुनिश्चित कराना सरकार की जिम्मेदारी है।

लेकिन आखिर यह कैसे संभव हुआ कि नगर निगम के कर्मचारी फुटपाथों पर गुजारा करने वाले शक्तिहीन बुजुर्गों को डंपर में किसी अनुपयोगी सामान की तरह ढोकर शहर के बाहर छोड़ रहे थे? क्या उच्च स्तर के अधिकारियों के आदेश के बिना ऐसा हो रहा था? उन अधिकारियों ने क्या अपनी मर्जी से इस तरह की अमानवीयता बरतने की छूट दी थी? मामले के तूल पकड़ने के बाद भले ही राज्य सरकार ने औपचारिक तौर पर कार्रवाई के आदेश दिए, लेकिन सच यह है किसी महकमे के कामकाज की शैली में अगर लाचार बुजुर्गों के साथ ऐसा बर्ताव करना दिखा है तो इससे सरकार की संवेदनशीलता भी कठघरे में खड़ी होती है।

यह घटना अपने आप में बताने के लिए काफी है कि सतह पर दिखने वाली चमक की परतों तले कैसी त्रासदियां दबी हो सकती हैं। इंदौर को पिछले चार सालों से लगातार देश के सबसे स्वच्छ शहर का दर्जा मिलता आ रहा है। अब यह शहर पांचवीं बार भी इस दौड़ में है। सवाल है कि ऐसे तमगे को हासिल करने वाले शहर में स्वच्छता कार्यक्रम के संचालन में लगे महकमे को इस स्तर की अमानवीयता बरतने की छूट किसने दी होगी! क्या स्वच्छता के प्रदर्शन में अव्वल रहने के पीछे इस तरह की संवेदनहीन हरकतें भी छिपी हुई हैं? विकास महज दावे या दिखावे का नहीं, जमीनी स्तर पर महसूस करने का मामला है। चकाचौंध के पीछे पलते अंधेरे के रहते कोई शहर या समाज सब कुछ ठीक होने का दावा नहीं कर सकता।