राजस्थान में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद और सरकार गठन के पहले ही दोहरे हत्याकांड की जो घटना सामने आई है, उसने फिर यही दर्शाया है कि राज्य में कानून-व्यवस्था किस हालत में हैं। सरकार और प्रशासन की ओर से आए दिन सुरक्षा व्यवस्था के चाक-चौबंद होने के दावे के बीच जमीनी हकीकत यही है कि राज्य में अपराधियों को अपने सामने एक तरह से कोई चुनौती नहीं दिखती है और वे मनमाने तरीके से जघन्य वारदात करके फरार भी हो जाते हैं।
मगर जयपुर की ताजा घटना इसलिए भी ज्यादा गंभीर है कि इसमें राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी और वहीं मौजूद एक अन्य व्यक्ति की हत्या कर दी गई, जो शायद मजबूत सुरक्षा घेरे में रहते हों। राज्य के लोगों को हर स्तर पर सुरक्षा मुहैया कराने के लिए कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सख्ती से लेकर आपराधिक वारदात की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसे तमाम दावे एक तरफ रह गए और दो अपराधियों ने सुखदेव सिंह गोगामेड़ी के घर में जाकर उनकी हत्या कर दी।
जाहिर है, वारदात को अंजाम देने पहुंचे अपराधियों के भीतर एक तरह से किसी का खौफ नहीं था। सवाल है कि अगर बिना किसी बाधा या अड़चन के किसी चर्चित हस्ती की हत्या करने के बाद अपराधी फरार भी हो जाते हैं तो यह वास्तव में किसकी नाकामी है! खबरों के मुताबिक, हत्या की जिम्मेदारी एक कुख्यात अपराधी ने ली, जो जेल में बंद एक बड़े गैंगस्टर के साथ मिलकर काम कर रहा था और उसकी तरफ से गोगामेड़ी को लगातार धमकियां मिल रही थीं।
शायद किसी ऐसी घटना की आशंका के मद्देनजर ही गोगामेड़ी ने अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन सरकार ने इस ओर समय पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। अब जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया, उसे देखते हुए क्या सरकार अब भी यह दावा करने की हालत में है कि कानून-व्यवस्था को लागू करने के उसके दावे पूरी तरह पुख्ता रहे हैं? अब हत्या की जांच के लिए पुलिस ने विशेष जांच दल गठित किया है, मगर सच यह है कि राज्य की राजधानी जयपुर में सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या ने समूचे सरकारी तंत्र के सुरक्षा इंतजामों और पुलिस के खुफिया तंत्र की विफलता का ही बयान किया है।
दरअसल, समूचे राज्य में ऐसी छोटी-बड़ी घटनाओं की एक शृंखला है, जिसे संभालने में सरकार नाकाम रही। अकेले जयपुर में सन 2022 में अट्ठाईस हजार एक सौ इकहत्तर आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। इससे पिछले वर्ष यह संख्या तेईस हजार तीन सौ उनतालीस थी। साफ है कि वक्त के साथ राज्य में हालात बिगड़ते गए हैं। इसका मतलब यही निकलता है कि वहां अपराधियों के भीतर पुलिस प्रशासन का कोई खौफ नहीं है।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले कई सालों से विपक्ष ने राज्य में एक पूर्णकालिक गृहमंत्री नहीं होने को लेकर अक्सर सवाल उठाए। मगर पहले ही कई अन्य विभागों का बोझ उठाए मुख्यमंत्री को अपराधों की रोकथाम की कितनी चिंता थी? ऐसे में आम जनता के बीच सरकार और उसकी कार्यप्रणाली को लेकर क्या राय बनेगी?
यह बेवजह नहीं है कि इस विधानसभा चुनाव में राजस्थान की कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा बनी और इसने बड़े पैमाने पर लोगों की राय और उसके बाद वोट पर असर डाला। अब नई सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती राज्य में कानून व्यवस्था के मोर्चे पर आम जनता के भीतर विश्वास बहाल करने की होगी, क्योंकि यह वादा सबसे अहम चुनावी मुद्दों में से एक था।