विभिन्न मंत्रालयों में सचिव, उपसचिव और निदेशक के लिए सीधी भर्ती यानी ‘लेटरल एंट्री’ को आखिरकार सरकार ने रोक दिया है। पिछले हफ्ते चौबीस मंत्रालयों में ऐसे पैंतालीस पदों पर भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग ने विज्ञापन निकाला था, जिसे उसने अब रद्द कर दिया है। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि सरकार इस तरह अपने पसंदीदा लोगों को भर्ती करना चाहती है। इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े समुदाय के लोगों के लिए संविधान में मिले आरक्षण के प्रावधान का उल्लंघन होगा। इस मसले पर सरकार के सहयोगी दलों ने भी विरोध में आवाज उठानी शुरू कर दी थी।
दो दिन तक इसके अलग-अलग पक्षों पर खूब बहस हुई। अब सरकार ने यूपीएससी को पत्र लिख कर कहा है कि इन भर्तियों में भी सामाजिक न्यायका ध्यान रखा जाना जरूरी है। जाहिर है, इसे विपक्ष अपनी विजय के रूप में रेखांकित कर रहा है, मगर हकीकत यह है इसे सत्तापक्ष की पराजय नहीं कहा जा सकता। सत्तापक्ष ने केवल पैंतरा बदला है। यूपीएससी को लिखी कार्मिक मंत्रालय की चिट्ठी से जाहिर है कि सीधी भर्तियां तो होंगी, मगर आरक्षण का ध्यान रखते हुए। ऐसे में इस सवाल का जवाब शायद ही मिल पाए कि आखिर मंत्रालयों में इतने बड़े पैमाने पर बाहर के लोगों की सीधी भर्ती का औचित्य क्या है!
मंत्रालयों में सीधी भर्ती का प्रावधान इसलिए किया गया था कि इस तरह निजी क्षेत्रों या दूसरे संस्थानों में काम कर रहे विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा सकें। पहले भी सीधी भर्तियां होती रही हैं। ऐसे लोगों को तीन से पांच वर्ष तक की अवधि के लिए प्रतिनियुक्ति या तदर्थ आधार पर नियुक्त किया जाता है। अब बदलती जरूरतों के मुताबिक अनेक क्षेत्रों में तकनीकी विशेषज्ञता की दरकार बढ़ी है। इसी तर्क पर नई भर्तियां विज्ञापित की गई थीं। मगर इन्हें लेकर विवाद इसलिए भी उठा कि पहले ही विभिन्न मंत्रालयों में अनेक सीधी भर्तियां की जा चुकी हैं।
सीधी भर्ती का अर्थ यह नहीं माना जाना चाहिए कि नियमित आधार पर भर्ती लोगों की योग्यता को नजरअंदाज कर दिया जाए। मंत्रालयों का कामकाज नौकरशाही के बल पर ही चलता है और उसमें विभिन्न अनुशासनों के लोग होते हैं। तकनीकी क्षेत्रों के लोगों की भी उसमें कमी नहीं है। फिर, बदलती जरूरतों के मुताबिक इन अधिकारियों को कौशल विकास के लिए विदेशों में भेज कर प्रशिक्षण भी दिया जाता है। ऐसे में बड़ी तादाद में बाहर से लोगों को लाने पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
सीधी भर्तियों के मामले में स्वाभाविक रूप से यह आरोप लगाना आसान हो जाता है कि ऐसे लोग प्राय: सरकार की इच्छा के अनुरूप ही काम करते हैं। फिर, ऊंचे पदों पर बाहर से लोगों को लाने की वजह से नियमित प्रशासनिक अधिकारियों की पदोन्नति के अवसर काफी सिकुड़ जाते हैं। हर नौकरशाह चाहता है कि वह मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दे, मगर सीधी भर्ती से लोगों को लिए जाने के कारण उन्हें वह मौका नहीं मिल पाता। इस बात को लेकर भी प्रशासनिक अधिकारियों में असंतोष देखा जाता है। कई महत्त्वपूर्ण विभागों में सचिव स्तर पर पदोन्नति के बजाय लंबा कार्य विस्तार देखा जाने लगा है। अच्छी बात है कि सरकार ने सीधी भर्ती की प्रक्रिया पर विराम लगा दिया है, मगर उससे ठहर कर इस पर भी विचार करने की अपेक्षा की जाती है कि नियमित प्रशासनिक अधिकारियों की योग्यता और अपेक्षाओं का पारदर्शिता के साथ मूल्यांकन हो।