पिछले कुछ समय से खालिस्तान समर्थक तत्त्वों की ओर जैसे हालात पैदा किए जा रहे हैं, अगर वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो शायद एक बार फिर चुनौती जटिल हो जा सकती है। खासतौर पर हाल के दिनों में कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में स्थित दूतावासों के सामने जैसे जोखिम खड़े हुए हैं, उसके मद्देनजर भारत का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। यही वजह है कि भारत ने इन देशों में खालिस्तानी तत्त्वों की गतिविधियों और हिंसा फैलाने की घटनाओं को अस्वीकार्य करार दिया है।

गुरुवार को भारत की ओर से साफ शब्दों में कहा गया कि दूसरे देशों में अपने राजनयिकों और मिशन की सुरक्षा करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और संबंधित देशों से वियना संधि के मुताबिक दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है। हालांकि भारत को यह चिंता जताने की जरूरत पड़ी, यही अपने आप में उन देशों के लिए विचार का मसला होना चाहिए कि नियमों के अनुरूप हर स्तर पर सुरक्षा का भरोसा दिलाने के बावजूद वहां भारतीय दूतावासों के सामने जोखिम के हालात कैसे पैदा हुए।

गौरतलब है कि वियना संधि के मुताबिक कूटनीतिक संबंधों के मामले में कई ऐसे नियम हैं, जिनके तहत दूतावासों की इमारतों और उनमें काम करने वाले लोगों को मेजबान देशों की ओर से सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। इससे जुड़े नियमों की बाध्यता यहां तक है कि अगर दो देशों के बीच किसी मसले पर बेहद तनाव की स्थिति भी हो, तब भी कोई देश संबंधित देश के उच्चायोग या वहां नियुक्त राजनयिकों और अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा का बंदोबस्त करता है।

हैरानी की बात यह है कि जिस दौर में भारत और अमेरिका के संबंधों में नए आयाम देखे जा रहे हैं, उसके बीच भी कुछ दिन पहले अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में खालिस्तानी कट्टरपंथियों ने आगजनी की। साफ है कि बिना सुरक्षा में चूक के दूतावास जैसी सुरक्षित इमारत में दाखिल होकर आग लगाने में किसी को कामयाबी नहीं मिल सकती। यह तब है जब अमेरिका में आतंकवादी हमलों की आशंका से लेकर अन्य कई संवेदनशील मामलों के मद्देनजर बरती जाने वाली उच्च स्तरीय चौकसी के तहत दुनिया में सबसे सख्त सुरक्षा व्यवस्था का दावा किया जाता है।

दरअसल, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में भी खालिस्तान के समर्थकों के ताजा उभार ने भारत के लिए चिंता पैदा की है। इन देशों में कभी भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले पोस्टर लगा दिए जाते हैं तो कभी सीधे हिंसा करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में दूतावासों में राजनयिकों और कर्मचारियों के सामने कई तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं। यही वजह है कि भारत ने नई दिल्ली में कनाडा के राजदूत को तलब भी किया और कनाडा में खालिस्तान समर्थक तत्त्वों की बढ़ती गतिविधियों पर आपत्ति जताने वाला पत्र भी जारी किया गया।

सवाल है कि अगर दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी संबंधित देश की है, तो उसमें कहां और क्यों चूक हो रही है कि भारत को इसके लिए अलग से चिंता जताने की जरूरत पड़ रही है। हालांकि भारत के ताजा रुख के बाद कनाडा और ब्रिटेन की ओर से चरमपंथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी की गई है, लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इस तरह की अवांछित गतिविधियां खालिस्तान समर्थकों की ओर से भारत विरोधी दुष्प्रचार का भी नतीजा हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि जिन देशों में खालिस्तान समर्थकों की अवांछित गतिविधियां चल रही हैं, वहां अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी को भारत के खिलाफ दुषप्रचार करने या हिंसा भड़काने की छूट न मिले।