दिल्ली में प्रदूषण पर नकेल कसना कठिन होता गया है। ऐसे में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की चिंता स्वाभाविक है। सबसे अधिक परेशानी वाहनों से निकलने वाले धुएं की वजह से हो रही है। उसमें भी बाहरी राज्यों से माल ढुलाई के लिए रोज दिल्ली आने-जाने वाले भारी वाहन प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली के कुल प्रदूषण में करीब तीस फीसद हिस्सा बाहर से आने वाले ट्रकों का होता है। इसके मद्देनजर राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दिल्ली नगर निगम को बाहर से आने वाले भारी वाहनों पर टोल टैक्स के अलावा पर्यावरण शुल्क लगाने को कहा है। पर्यावरण शुल्क वाहनों की अलग-अलग प्रकृति के मुताबिक पांच सौ से एक हजार रुपए तक वसूलने का प्रस्ताव है।
निगम के मुताबिक दिल्ली में रोज तीस हजार तीन सौ तिहत्तर ट्रक बाहरी राज्यों से प्रवेश करते हैं, जबकि एक स्वयंसेवी संगठन के अध्ययन के अनुसार इनकी संख्या बावन हजार से ऊपर है। हरित पंचाट ने नगर निगम को ऐसे वाहनों की वास्तविक संख्या पता लगाने को कहा है। इन वाहनों से वसूले जाने वाले पर्यावरण शुल्क से दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण संबंधी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। मगर इस तरह दिल्ली की आबो-हवा कितनी साफ हो पाएगी, कहना मुश्किल है। इसके चलते माल ढुलाई का खर्च बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों पर जरूर असर पड़ेगा, फिर यह नियम भी इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देने का सबब बने तो हैरत की बात नहीं होगी।
दिल्ली में रोज ट्रकों की बढ़ती आवाजाही का बड़ा कारण उद्योग-धंधों का दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में केंद्रित होते जाना है। मुख्य रूप से गुड़गांव, रोहतक, गाजियाबाद, नोएडा के विस्तारित इलाकों में उद्योग-धंधों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तरों, गोदामों आदि की मौजूदगी सघन होती गई है। इस तरह न सिर्फ इनमें काम करने वाले लोगों को दिल्ली और आसपास के इलाकों में रोज आना-जाना पड़ता है, बल्कि कच्चे और तैयार माल आदि की ढुलाई भी बड़े पैमाने पर होती है। अगर एक औद्योगिक क्षेत्र से दूसरे में माल लेकर जाना हो तो ट्रकों को दिल्ली के भीतर से होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह उनसे निकलने वाला धुआं राजधानी की हवा में जहरीले तत्त्वों की मात्रा काफी खतरनाक हद तक बढ़ा देता है।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की वजह से फेफड़े, त्वचा, आंख-नाक-कान आदि की बीमारियां बढ़ रही हैं। बच्चों का स्वाभाविक विकास बाधित हुआ है। लोगों के स्वभाव और जीवन-शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए अदालतें प्रदूषण पर काबू पाने का निर्देश देती रही हैं। मगर सीएनजी आदि के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के बावजूद स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा है। मगर पर्यावरण शुल्क लगा कर इस समस्या पर काबू पाना शायद ही संभव हो। इसके लिए माल ढुलाई, आसपास के इलाकों से लोगों के आवागमन आदि के दूसरे विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। दरअसल, इस मामले में न्यायपालिका की सीमाएं हैं, क्योंकि नीतियां और योजनाएं बनाना उसके हाथ में नहीं है। यह काफी हद तक सरकारों से ताल्लुक रखने वाला मसला है, पर वे फिलहाल ज्यादा चिंतित नहीं दिखतीं।
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