अजीब विडंबना है कि इस वक्त जब कोरोना संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए सभी नागरिकों से सहयोग की अपेक्षा की जा रही है, कुछ लोग न सिर्फ नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते, बल्कि सुरक्षा और चिकित्सक दलों पर हमले भी करते देखे जा रहे हैं। जो लोगों को इस संक्रमण से मुक्त करने या इसके बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हीं के साथ असहयोग और उन पर हमले करना खतरे को न्योता देना ही है। मुरादाबाद में एक पीतल व्यवसायी की कोरोना से हुई मौत के बाद जब पुलिस और चिकित्सकों का दल उसके परिजनों की सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें अलग-थलग रखने के लिए पहुंचा, तो उस पर मुहल्ले के लोगों ने हमला कर दिया, छतों से पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। इस हमले में दल के सभी सदस्य घायल हुए। ऐसी कई घटनाएं देश के दूसरे इलाकों में भी देखी गई हैं। पुलिस लोगों से सुरक्षित दूरी बनाए रखने, उन्हें अनावश्यक इधर-उधर न घूमने को कहती है, तो लोग हिंसक हो उठते हैं। पंजाब के पटियाला का मामला कुछ दिनों पहले का ही है, जब लोगों ने नियमों का पालन करने को कहने पर पुलिस अधिकारी का हाथ काट दिया। ऐसी हरकतों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई भी हो रही है, पर लोग बाज नहीं आ रहे।
आखिर चिकित्सक और पुलिस लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर ही जांच और संदिग्ध लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। मगर लोगों को लगता है कि यह उनकी निजता में बेजा दखल है। कोरोना संकट में निजता का कोई अर्थ नहीं। अगर कोई व्यक्ति संक्रमित है, तो वह समाज के बहुत सारे लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसलिए उसे संक्रमण मुक्त करना प्रशासन की जिम्मेदारी है। किसी को अपनी निजता के आधार पर यह छूट नहीं मिल जाती कि वह दूसरों में बीमारी फैलाता फिरे। लगातार संचार माध्यमों के जरिए लोगों को कोरोना संक्रमण से बचने के उपायों पर चर्चा की जा रही है, लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि किस तरह इस विषाणु से पार पाएं। उनसे अपील की जा रही है कि अगर इस संक्रमण के लक्षण नजर आते हैं, तो वे स्वत: सामने आकर चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाएं। मगर शायद कुछ लोगों को अपनी जान की भी परवाह नहीं या फिर वे कानूनी सख्ती के इस कदर आदी हो चुके हैं कि बिना कड़ाई के काबू में नहीं आते!
कोरोनो विषाणु की परवाह किए बगैर मनमानी पूर्वक घूमना या चिकित्सा दलों, पुलिस की अपील को ठुकराना कोई साहस या शान की बात नहीं। यह बीमारी इस वक्त महामारी का रूप ले चुकी है। दुनिया के तमाम विकसित, समृद्ध और उन्नत चिकित्सा व्यवस्था वाले देश भी इस पर काबू पाने के मामले में घुटने टेक चुके हैं। ऐसे में अगर प्रशासन सावधानी बरतने को कहता है, तो उसे नजरअंदाज करने की कोई तुक नहीं। विचित्र है कि इस मामले में जहां लोगों को खुद आगे बढ़ कर सहयोग का रुख दिखाना चाहिए, अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना चाहिए, इसके लिए पुलिस को डंडे चलाने पड़ रहे हैं। यह भला किस सभ्य समाज की निशानी कही जा सकती है कि जो डॉक्टर लोगों की जान बचाने की खातिर अपनी सेहत की परवाह नहीं कर रहे और तमाम जोखिमों से गुजरते हुए जांच और इलाज उपलब्ध करा रहे हैं, उन्हीं के साथ बदतमीजी करने, उन पर हमले करने की कोशिशें हो रही हैं!

